क्योंकि मजदूर हूँ मैं, इसीलिए तो मजबूर हूँ मैं…
आशीष पाल
इस देश का बड़ा हिस्सा हूँ, यहाँ हुई हर उन्नति का एक अनकहा किस्सा हूँ!
मैं वो हूँ जिसके बिना इस देश-समाज की कल्पना अधूरी है,
फिर भी मेरे देश, मेरी मिट्टी की आज मुझसे कोसों की दूरी है!
क्योंकि मजदूर हूँ मैं, इसीलिए तो मजबूर हूँ मैं…
मेरी दास्ताँ सबको खूब भाती है,
ये सत्ता को भी खूब रास आती है!
मेरे नाम पर राजनीति की रोटी सेकी जाती है,
मगर रात को मेरी बेटी भूखी सो जाती है!
सरकारें मेरे नाम पर बनायी और गिराई जाती है,
और फिर सत्ता की हर गली मेरे नाम से कतराती है!
क्योंकि मजदूर हूँ मैं, इसीलिए तो मजबूर हूँ मैं…
आज मैं लाचार हूँ, आज मैं मजबूर हूँ क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
कल फिर एक मौसम आयेगा एक नया तराना लायेगा,
मुझे मेरा अस्तित्व याद दिलाया जाएगा!
फिर मैं हिन्दू – सिख – मुसलामान हो जाऊंगा,
मैं फिर वही तराना गाऊंगा!
फिर से कोई आयेगा, झूठा एहसास मुझे दिलाएगा कि पत्थर नहीं कोहिनूर हूं मैं!
क्योंकि मजदूर हूं मैं, इसीलिए तो मजबूर हूं मैं…
डिस्क्लेमर: यह कलमकार के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि यह विचार या राय VoxofBharat के विचारों को भी प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां कलमकार की हैं अतः VoxofBharat उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है।