आहट गिरते पत्तों की….

✍ पूजा कुमारी “धानी”

गिरते हुए पत्तों की खड़खड़ाहट कभी सुनी है,

वह आह है उनकी जो आती है समूचे जोर से..

कि दर्द उनका कोई भी समझ नहीं पाता।

बिछड़ के अपनी जड़ों से वो कुचल जाते हैं सदा,

नहीं पाते हैं फिर से वो शायद कोई मुकाम।

 तो जब कभी देखो कि कोई पत्ता जमीन पर गिरा हो,

 समझना तुम कभी कि शायद वह दर्द से भरा हो।

तभी आती है उनके गिरने की आहट,

और तभी होती है उनकी आवाज में खड़खड़ाहट ।

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