ये चंद बिंदु हैं बिहार की बदहाली के गवाह….
Team VOB
पटना: बिहार में चौमुखी विकास के दावे किये जा रहे हैं लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट कुछ और ही कहती है। अब तक आपने भी यह बात सुनी होगी कि बिहार देश के अन्य राज्यों की तुलना में बदतर हालत में है। साफ़ शब्दों में कहें तो आज की तारीख में बिहार एक बेचारा राज्य के रूप में जाना जा रहा है।
नीति आयोग की वर्ष 2019-2020 की सतत विकास लक्ष्य की रिपोर्ट के आधार पर समझिये मुख्य खामियां क्या हैं….?
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार और ओडिशा में गरीबी सबसे अधिक बढ़ी है।
- 5 वर्ष से कम आयु के स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों का प्रतिशत 42 प्रतिशत है, जो कि बिहार में सबसे अधिक है।
- बिहार में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉप-आउट का प्रतिशत सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड में 36.64 प्रतिशत है।
- विभिन्न राज्यों को देखते हुए बिहार में सबसे कम नामांकन (छात्रों का) 13.6 प्रतिशत है।
- पंद्रह राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों ने उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता हासिल की है। इसमे बिहार में सबसे कम 0.79 है।
- बिहार में केवल 21.75 फीसदी स्कूल ही अपना शैक्षिक आदर्श लक्ष्य पूरा करते हैं।
- बिहार में चरम मौसम की घटनाओं के कारण प्रत्येक वर्ष सैकड़ों लोग मारे जाते हैं पिछले साल यह संख्या करीब 600 थी।
- राज्य में रिपोर्ट की गई हत्याएं (1 लाख जनसंख्या पर) 2018 में 2.5% एवं 2019 में 2.66% । कई हत्याएं तो दर्ज ही नहीं हो पातीं।
- बिहार में शारीरिक/ मनोवैज्ञानिक/ यौन हिंसा प्रति एक लाख- ।48.08।
- राज्य में बच्चों के खिलाफ संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट (1 लाख जनसंख्या पर) 2018 में 9 थी, 2019 में बढ़कर 12 हो गयी।
- मानव तस्करी के शिकार (100,000 जनसंख्या पर करीब 0.5 फीसदी) ।
- अदालतों की अनुमानित संख्या (10 लाख व्यक्ति पर ) मात्र 12।
- पीसीए और आईपीसी के तहत दर्ज मामले (100,000 जनसंख्या पर 0.12%)।
- सतत विकास सूचकांक में बिहार राज्यों की सूची में 28वें नंबर पर है।
- बेरोजगारी में 46.6 प्रतिशत के साथ बिहार नम्बर एक पर है।
- NCRB के अनुसार देश भर में दलितों पर सबसे ज्यादा क्राइम बिहार में हुए जिसका दर 40.7 फीसदी है।
इन सोलह बिन्दुओं में से बिहार सरकार अगर आधे पर भी ठीक से ध्यान आकर्षित कर लेती है तो बिहार की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।