सीमा पर शहादत ….

✍ Ashish Pal

फिर सीमा पर शहादत हुई,

फिर मन के भीतर बगावत हुई..

फिर हमने एक संकल्प ठाना है,

फिर पड़ोसी के दुष्ट इरादों को पहचाना है..

पर हम इस सब के आदी हैं,

पश्चिमी सभ्यता से ओतप्रोत, पर वस्त्र हमारे खादी हैं..

फिर से देश यह सब विस्मृत हो जाएगा,

फिर से अंतर-विभाजन रूपी त्यौहार मनाया जाएगा..

फिर से दुश्मन हमारे अपने होंगे,

तभी तो राजनीति के पूरे सपने होंगे..

इस बार आग को बुझने नहीं देना है,

हर हाल में प्रतिशोध लेना है..

पर अधीरता से काम न चलेगा,

लक्ष्य बड़ा है थोड़ा समय लगेगा..

अभी सैलाब बड़ा है,

दुश्मन तैयारी के साथ खड़ा है..

थोड़ा संयम रखो कूटनीति से काम लो,

सोचो समझो मौका देखो फिर इंतकाम लो।

कलमकार, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद में सहायक प्राध्यापक हैं ।

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