क्या वाकई में हम 2020 के भारत में जी रहे हैं ….(पार्ट-1)

Devesh P Singh

जैसे ही हमने 21वीं सदी में पहला कदम रखा, हमारी आकांक्षाएं, विपत्तियों पर भारी पड़ने लगीं। ऐसा लगने लगा कि यह दशक हमारे लिए वरदान बनकर उभरेगा। 1 जनवरी 2000 को हमने जब 21वीं सदी में प्रवेश किया, सब कुछ लगभग ठीक ठाक ही चल रहा था और अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में हमारा भारत “इंडिया शाइनिंग” की डोर पकड़कर आगे बढ़ रहा था। इस दशक की शुरुआत में ही हमने अपने पड़ोसी देश पकिस्तान को युद्ध में धूल चटाई थी और उसके नापाक मंसूबों को ध्वस्त किया था।

शुरूआती घटनाएँ जिन्होंने झकझोर कर रख दिया….

लेकिन पहली ही बरष में कुछ वाकये ऐसे हो गए जिसने भारत के 21वीं सदी को जैसे नजर ही लगा दी हो। 2001 में ही भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर हमला हुआ और इसे ठीक करने में वर्षों लग गए, इस घटना ने बता दिया कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था अभी तक कितनी कमजोर थी। अभी इस घटना को कुछ ही महीने बीते थे कि गुजरात में गोधरा रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में अयोध्या से लौट रहे 59 लोगों को जिन्दा जला दिया गया। इसके बाद न सिर्फ गुजरात में बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में भी सांप्रदायिक दंगे हुए और कई लोगों ने अपनी जाने गंवायी, आपसी वैमनस्य का 21वीं सदी का यह सबसे बड़ा उदहारण था।

File Photo

अब वक्त था यह सब भुलाकर प्रगति की राह पर बढ़ने का….

इन सब घटनाओं को भुलाकर अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार अब देश को प्रगति की राह पर ले जाने की ओर अग्रसर दिखने लगी। भारत में सड़क सेवा के क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देकर इसका उदाहरण हमें दिखायी दिया। “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना” जिसकी शुरुआत 2000 में ही हो चुकी थी, यह अब अपना आकार ले चुकी थी इसके तहत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों को मुख्य सडक मार्ग से जोड़ा जाना था। और भारत देश के महानगरों को जोड़े जाने के “स्वर्णिम चतुर्भुज” योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों को विकसित किया जाने लगा। इस चतुर्भुज के माध्यम से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को जोड़ा जाना था। अप्रैल 2002 में इसका भी उद्घाटन हुआ। वर्ष 2002 के अंत में ही हमने भारत में मेट्रो के सपने को हकीकत होते देखा, भारत की राजधानी दिल्ली में शाहदरा से तीस हजारी तक 24 दिसम्बर 2002 में पहली बार मेट्रो दौड़ी।

खेलों की दुनिया में भारत को अलग पहचान मिली….

अब तक खेल के क्षेत्र में अगर हम हॉकी को छोड़ दें तो हमे हमेशा निराशा ही मिली थी, लेकिन वर्ष 2004 का यह समय हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट लाने वाला रहा 2004 में पहली बार ओलंपिक्स की दुनिया में भारत का परचम लहराया और इसका गवाह बने भारतीय सेना से कर्नल पद से रिटायर्ड हुए राज्यवर्धन राठौड़ जिन्होंने निशानेबाजी प्रतियोगिता में भारत को रजत पदक दिलाया।

इसी तरह हम आगे बढ़ते रहे और वर्ष 2008 में भारत की वजह से क्रिकेट की दुनिया में भी बदलाव आया इस वर्ष IPL (इंडियन प्रीमिअर लीग) की शुरुआत हुई, जिसमे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडियों ने भाग लिया। 2011 का साल तो भला कौन ही भूल सकता है, इस साल महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारत ने श्रीलंका को हराकर  शानदार तरीके से क्रिकेट विश्व कप जीता।

दिल्ली में हुआ 21वीं सदी का सबे बड़ा जन आन्दोलन….

जन लोकपाल बिल की मांगों को लेकर वर्ष 2011 में देश ने दिल्ली के रामलीला मैदान में 21वीं सदी का सबसे विशाल आन्दोलन देखा महाराष्ट्र के पुणे जिले के रालेगनसिद्धि से आये अन्ना हजारे द्वारा अनशन से इस आन्दोलन की शुरुआत की गयी और फिर इसका नाम भी “अन्ना हजारे आन्दोलन” पड़ गया। दिल्ली में लड़कियों के लिए यह समय तब सबसे असुरक्षित माना जाने लगा जब दिसम्बर 2012 में दिल्ली में निर्भया (मीडिया में चलित नाम) के साथ चलती बस में दुराचार हुआ, निर्भया गैंगरेप के बाद इस देश में इंसाफ आन्दोलन के चलते, कानून में भी कुछ परिवर्तन किये गए।

File Photo

राजनीति में डिजिटलाईजेशन का दौर….

वैसे तो भारत देश में डिजिटल क्रांति की शुरुआत पहले ही चुकी थी लेकिन वर्ष 2012 में भारतीय राजनीति में भी इसका प्रवेश हुआ और वैसे भी जब तक हमारे यहाँ कोई क्रांति राजनीति के स्पर्श में न आ जाए तब तक उसे सफल नहीं माना जाता है। वर्ष 2012 में यह पहली बार हुआ था जब भारत मोबाइल प्रसार का साक्षी बना, ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल साइट्स भारत में व्यापक रूप हासिल कर रही थीं। हालांकि भारत सरकार ने कई व्यक्तिगत ट्विटर अकाउंट पर प्रतिबंध भी लगाया, इसके लिए पूर्वोत्तर के भारतीयों के विरुद्ध हिंसा भड़काने का हवाला दिया गया। इस बावत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और तकनीक के विस्तार हेतु कई बाद-विवाद हुए। उस समय गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर रही थी सरकार के खिलाफ ट्विटर की इस लड़ाई में नरेन्द्र मोदी भी कूद पड़े और उन्होंने स्वयं अपने ट्विटर अकाउंट की DP को ब्लैक कर लिया। नरेन्द्र मोदी की इस गतिविधि ने युवाओं के बीच लोकप्रियता में चार चाँद लगाने का काम किया। 2012 में भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की जनता ने एक युवा व्यक्ति “अखिलेश यादव” के हाथों में सत्ता सौंपी, अखिलेश यादव ने युवाओं का हित देखते हुए 12वीं उत्तीर्ण किये सभी छात्रों को लैपटॉप देने का काम किया, इस कदम को छात्रों को डिजिटल साक्षरता युक्त बनाने वाले कदम की ओर देखा गया।

भारतीय लोकतंत्र के दूसरे अध्याय का आगाज….

वर्ष 2014 के मई महीने में आम चुनाव हुए और अब तक के गुजरात के मुख्यमंत्री “नरेन्द्र मोदी” के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, इस बार नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधान मंत्री बनाया गया। यहाँ हम लोकतंत्र के दूसरे अध्याय की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ था जब किसी गैर कांग्रेस पार्टी को लोकसभा के चुनाव में इतनी बड़ी सफलता मिली हो। लोकसभा की 543 सीटों में से BJP को  282 सीटों पर विजय हासिल हुई जो कि दो तिहाई से अधिक थी। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटों पर BJP को जीत हासिल हुई थी इसके लिए UP के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना था कि हमने बच्चों को लैपटॉप दिये थे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने इसका फायदा उठाया।

File Photo

आतंकवाद  व भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलेरेंस नीति….

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के कार्यकाल को अभी दो वर्ष का ही समय बीत पाया था कि आतंकवाद के प्रति भारत ने अपनी जीरो टोलेरेंस नीति दिखानी शुरू कर दी और इसका गवाह बनी सितम्बर 2016 में भारत द्वारा पकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक। काले धन को नियंत्रित करने हेतु नरेन्द्र मोदी ने आकस्मिक डिमोनिटाईजेसन का एलान कर दिया। इससे रोज की दिनचर्या में कई परेशानियों का सामना करने के बावजूद आम लोगों में यह प्रयास लोकप्रिय रहा। शायद इसीलिए भाजपा मार्च 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जीती। जुलाई 2017 में भारत सरकार ने सम्पूर्ण देश में एक समान कर की व्यवस्था हेतु “GST” वस्तु एवं सेवा कर को लागू किया।

जम्मू कश्मीर एवं राम मंदिर समस्या का समाधान….

भारत देश के राज्य/संघ से सम्बंधित जब भी कोई बात होती थी, जम्मू कश्मीर का नाम आते ही एक अजीब सी उलझन महसूस होने लगती थी, क्योंकि अब तक जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। वर्ष 2019 के अगस्त माह में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वर्ष 1953 में कानपुर अधिवेशन में कहीं वो पंक्तियाँ सच हुईं, जिसमे उन्होंने कहा था “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे”। माने अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर में लगा अनुच्छेद 35ए (धरा 370) बस यहीं तक था, अब आगे नहीं। नवंबर 2019 में 1980 की दशक में हाईलाइट हुई राम मंदिर की समस्या भी लगभग ख़त्म ही हो गयी और इस वर्ष यानी कि 2020 के अगस्त माह की 5 तारीख को इसका शिलान्यास भी होने जा रहा है। यह समस्या करीब 500 वर्षों से चली आ रही एतिहासिक गलती के सुधार के रूप में देखी जा रही है।

दो दशक के इन सब परिवर्तनों के बीच हम कब वर्ष  2020 में प्रवेश कर गए कुछ पता ही नहीं चला। भारत की इस प्रगति यात्रा को देखें तो 2020 महज तारीख भर नजर आ रही है क्योंकि सही मायनों में तो हमें जितना हासिल कर लेना चाहिए था, उसका आधा भी नहीं दिखाई देता। इसी पर आधारित VoxOfBharat जल्द ही इस स्टोरी का अगला भाग (कैसे यकीन कर लें कि हम 2020 के भारत में जी रहे हैं) जल्द ही प्रकाशित होगा। – Team VOB

4 thoughts on “क्या वाकई में हम 2020 के भारत में जी रहे हैं ….(पार्ट-1)

  • July 21, 2020 at 5:22 am
    Permalink

    सटीक और सारगर्भित विश्लेषण l

    Reply
  • July 21, 2020 at 8:29 am
    Permalink

    तथ्यों का बेहतरीन विश्लेषण और जानकारी से पूर्ण लेख

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *