आयरलैंड से भारत की बेटी का देश के हुक्मरानों के नाम खुला ख़त….
✍️ डॉ मंजू डागर चौधरी
प्रिय प्रधानमंत्री जी सादर प्रणाम,
देश की सभी बेटियों के पिता, और कितने सामूहिक बलात्कारों का दर्द सहें
मेरा सीधा सवाल आपसे है क्योंकि किसी भी देश का प्रधानमंत्री अपनी जनता का संरक्षक होता है। आज हिंदुस्तान की हर बेटी आपकी बेटी है। उसकी अस्मिता की सुरक्षा की जिम्मेदारी इस समाज के साथ-साथ आपके कन्धों पर भी है। अगर आप सारे हिंदुस्तान की बेटियों की अस्मिता की सुरक्षा नहीं कर सकते तब संरक्षक बने रहने का आपको कोई हक़ नहीं है। आप कितने महाभारत करवाएंगे प्रधानमंत्री जी। पहले महाभारत में तो न आप थे न मैं लेकिन बेटियाँ तब भी थी। एक द्रोपदी के अपमान का बदला महाभारत में तब्दील जरुर हुआ था लेकिन और भी बहुत से सामाजिक कारण थे उस युद्ध के। समाज का विघटन हो रहा है दिन-प्रतिदिन। वक़्त रहते संभालिये इसको नहीं तो इन वहशी-दरिंदों की वजह से ही बेटियों की एक बार फिर से गर्भ में ही हत्याएं करनी आरंभ कर देगा ये घिनौना होता जा रहा समाज।
भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्-जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है। लेकिन क्या समाज नारी को आज उसका ये हक़ दे पा रहा है ? “जब पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वो महात्मा बन जाता है और अगर नारी में पुरुष के गुण आ जाये तो वो कुलटा बन जाती है”। ‘गोदान’ की ये पंक्तियां प्रेमचंद जी का नारी को देखने का संपूर्ण नज़रिया बयां करती हैं।
नारी ने तो बहुत बार पुरुष समाज को आईना दिखाने की कोशिश की लेकिन वो अपने पुरुष होने के अहँकार के चलते कुछ देखने को तैयार ही नहीं होता फिर एक पुरुष मुंशी प्रेमचंद जी ने भी पूरी पुरुष जाति को आईना दिखाया वो भी उनको देखना गवारा नहीं। तब कितने ही समाज सुधारक आ जाये इस भारतीय समाज में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।
प्रधानमंत्री जी आप महिला सशक्तिकरण की बात तो बहुत करते हैं लेकिन बेटियों को जीने का हक़ भी नहीं दिलवा पा रहे। आप हिंदुस्तान की बेटियों के पिता की भूमिका में पूरी तरह से निष्फल हो गए हैं। कहाँ हैं वो सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष जो महिलाओं को सुरक्षा देने के नाम पर पद और प्रतिष्ठा और बड़ा -बड़ा वेतन लेती हैं। किन कोठियों में छुपी हुई बैठी पार्टियां कर रहीं हैं वो। कौन से मेकअप और ब्रांडेड कपड़ो के साथ ? जहां पूरी तरह से शराब और सिगरेट के धुएँ के कश पर कश लगाये जाते हैं ?
कहाँ है वो मुख्य धारा की महान पत्रकार महिलाएं जो हिन्दू-मुस्लिम पर तो बड़ी पत्रकारिता करती हैं, लेकिन बेटियों के सामूहिक दुष्कर्म पर अपना मुँह छुपा कर कहीं बैठी कोई नई ख़बर रच रहीं हैं कि इस बलात्कार को किस एंगेल से ख़बर बनाई जाये ताकि हमको भी कोई राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय पत्रकारिता का अवॉर्ड मिल जाये। शर्म आनी चाहिए आप लोगों को जो आज भी ऐसी ख़बर लिखता है कि एक दलित लड़की से बलात्कार हुआ मतलब वो दलित थी इस लिए बलात्कार हुआ। दलित हटा दीजिये और जब वो बस लड़की रह जाये तब उससे बलात्कार नहीं होता। अरे समाज के ठेकेदारों अपनी सोच और दिमाग में भरे इस कचरे को बहार निकाल कर उस बेटी के सहे हुए दर्द को भी कभी समझ कर कोई ख़बर लिख लो। आपकी भी जवाबदेही बनती है इस समाज के प्रति।
यही हालात चलते रहे तब आने वाले वक़्त में सामूहिक बलात्कार की खबरें होगी कि फला राज्य में बीजेपी की सरकार थी तब इतने बलात्कार हुए। कांग्रेस की सरकार थी तब इतने। फिर साथ ही लगी होगी नई हैडलाइन दलित लड़की से दुष्कर्म किया गया। मुस्लिम लड़की से दुष्कर्म किया गया, ईसाई लड़की से दुष्कर्म किया गया। गोया लड़की न हो कर जाति और धर्म के साथ बलात्कार हुआ है। साथ ही एक और हैडलाइन आने को तैयार है कि बस हिंदू लड़कियों से बलात्कार क्यों नहीं होता क्योंकि मैंने तो खुद आज तक कोई ख़बर नहीं देखी जिसमें लिखा हो हिंदू लड़की से बलात्कार हुआ हो। कहने का मतलब बलात्कार तो होते रहे लेकिन फला जाति वाली या धर्म वाली नहीं बल्कि फला वाली का होना चाहिए। देखिए मेरी भारत सरकार और मीडिया घराने आप लड़की की अस्मिता की रक्षा कीजिये लड़की की , बलात्कार को जाति और धर्म से जोड़ना बंद कीजिये।
सुनो अरे विपक्षी राजनीतिक दल वालों, दलितों की हितैषी राजनीतिक दलों की महारानियों, धर्म के नाम पर सियासती राजनीतिक दल वालो तुम अपनी घिनौनी राजनीतिक रोटियां सेकनी बंद करो। वोट के नाम पर बलात्कारियों को सजा दिलवाने की जगह उनको बचाने का नंगा नाच बंद करो। क्या तुमको रात को सोते हुए कभी उस मजबूर निरहि नारी की चीत्कार नहीं सुनाई पड़ती जब वहशी दरिंदे उसके जिस्म को नोच रहे होते हैं ??
भारतीय पुलिस जो की महिलाओँ को न्याय दिलाने का टेंडर अपने नाम लिखवाये बैठी है वो खुद न जाने कितनी बार अपने थाने में ही मजबूर महिलाओं का न केवल शारीरिक बलात्कार ही करती है बल्कि मानसिक बलात्कार भी करती है गंदे -गंदे ढंग से सवाल करके। बेचारी लड़की को ऐसा घिनौना अहसास करवाती है जैसे उसने खुद ही अपना बलात्कार करवाया हो। कुछ दिन पहले ही एक पुलिस अधिकारी अपनी बीवी को मार कर शान से कंधे पर मैडल चमकाए कहते हैं ये मेरा घरेलु मामला है। वाह रे मर्दाने पुलिस वाले क्या शान है तुम्हारी। आप भूल गये कि समाज में अधिकारी बनने के उपरांत आप का व्यक्तिगत कुछ नहीं है। आप के परिवार की नारियाँ भी इसी समाज का हिस्सा हैं जिसकी सुरक्षा की ठेकेदारी आप को मिली है।
जब एक छोटी सी बेटी किसी घर में पैदा होती है न तब घर का हर पुरुष भी घर की महिलाओं की तरह ही उसको खिलाता है। उसके नाजुक अंगों को देख कर उसकी ज़्यादा परवाह करता है। पूरी तरह से ये सुनिश्चित करता है कि इस नन्हीं सी परी को कोई खरोंच तक न आये। जैसी नाजुक अंगों के साथ वो पैदा होती है हक़ीक़त में सारी उम्र उसका जिस्म नाजुक और कोमल ही रहता है। उसके शरीर में कुछ नहीं बदलता जैसे -जैसे वो बड़ी होती जाती है। मुझको ये कभी समझ नहीं आई पुरुष की मानसिकता कि अपने घर में पैदा हुई तो परी नज़र आई और दूसरे के घर पैदा हुई तब केवल उसका जिस्म नज़र आया जिसके साथ संभोग के सपने देखने लगता है वो। बुरी तरह से बढ़ते जा रहे बलात्कार और बलात्कार का भयानक रुप जो आज कल हमारे सामने निकल कर आ रहा है कि किसी के नाजुक अंगों में आप लोहे की रॉड डाल देते हैं ,किसी की अतड़िया तक बहार निकाल देते हैं , किसी की जीभ काट दे उसकी हड़िया तक तोड़ दे। वहशी दरिंदों को समाज के पुरषों को एक बात जरुर कहूँगी कि आप भले ही नारी को नोचते रहें क्योंकि आप जिंदा लाशें हैं तभी आपको उसका दर्द समझ नहीं आता। उसके शरीर पर आये घाव एक दिन भर भी जाएंगे लेकिन आत्मा पर आये घाव ता उम्र अन्दर ही अन्दर रिस्ते रहते हैं। वो जिन्दा तो रहती है लेकिन एक मुर्दे की तरह। कभी तो खुद के अंदर के राक्षस को मार कर सच वाला मर्द बनिये।
कितनी निर्भया ,कितनी गुड़िया ,कितनी परिया हर रोज नोच दी जाती है गिद्धों द्वारा और सब गूंगे -बहरे बने हुए बस कुछ दिन गली -चौराहों पर मोमबत्तियां जलाएंगे और अपने घरों में जा कर चैन की नींद सोयेंगे कि लीजिये हमनें न्याय की मांग में अपने होने की आहुति दे दी लेकिन अपने भीतर के गिद्ध को नहीं मरेंगे। आज किसी और की बेटी को नोचते सुना है कल अपनी बीवी को नोचेंगे क्योंकि उसको नोचने का तो प्रमाणपत्र मिल चुका है। सरकार को इसी वजह से क़ानून लाना पड़ा था कि बिना मर्ज़ी के किया गया संभोग भी बलात्कार की श्रेणी में ही आता है। लेकिन सच यही है बहुत सी बीवियों का भी हर पल बलात्कार उसके पति द्वारा ही किया जा रहा है। क्या सच में आप मर्द हैं ? क्या सच में ? एक बार सोचियेगा जरुर।
डबलिन से आपकी ही एक भारतीय बेटी
डॉ मंजू डागर चौधरी
पत्रकार, आयरलैंड