मेरी बेटी…
प्रियंका “श्री” खरे
हल्की धूप सी खिलखिलाती,
चिड़ियों सी चहचहाती।
मेरे आँगन की तू चिड़िया,
कभी इधर कभी उधर फुदफुदाती।
मन एक जगह नही रहता तेरा,
आसमान में उड़ने को कहता।
फूलों सी कोमल मेरी गुड़िया,
घर आँगन अपना महकाती।
मिट्टी की प्यारी सी मूरत,
सुकोमल, सुदृढ़, सुहृदय तेरा।
मन भावन मुस्कान है तेरी,
सबके मन को जो है लुभाती।
चाँद की चाँदनी सी तू शीतल, सूरज सा तेज है तुझमे
चेहरे की सुंदरता तेरे, प्रेममय करुणा मन दर्शाती।
सागर सा मन विशाल, निश्छल स्वच्छ और अपार।
प्यारी सी बोली है तेरी, ठोस हर मन पिघलाती।
सपनें कम नही है तेरे, पर्वत सा दृढ़ विश्वास तू रखके,
अपनें सपनों को जीती जाती।
एक घर में जन्म है लेती दूजे घर में ब्याही जाती,
अपनी कर्तव्यनिष्ठा से तू दोनों घर रोशन कर जाती।
हे तू मेरी नन्ही गुड़िया
तू ही लक्ष्मी, तू ही शारदा
तू ही सती सावित्री कहलाती।
धन्य हो जाती है माँ तेरी
जब तू जिसके जीवन मे आती।
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