न जाने इस सृष्टि में यह सब क्या हो रहा है…
योगिता यादव
न जाने इस सृष्टि में यह सब क्या हो रहा है,
आदमी आदमी को न छू रहा है।
बहुत तकली़फ होती है ऐसी तस्वीर देख,
जहां गरीब आदमी अपनी गरीबी में पाई पाई जुटाने को दौड़ रहा है।
यहाँ तेरा या मेरा शहर नहीं,
सारा हिंदुस्तान रो रहा है।
शहरवासी जहां अपनी सुरक्षा के लिए,
गरीब मजदूरों से मुंह मोड़ रहा है।
वही दिखाई देते हैं कुछ ऐसे भी चेहरे जो लोगों को इंसानियत से जोड़ रहे है,
एक तरफ मानो लगता है सब खत्म हो रहा है।
वहीं दूसरी तरफ मेरा देश आत्मनिर्भर बन,
दोबारा जंग में खड़ा हो रहा है।
कुछ नेता मंत्री का अभी भी,
तेरी मेरी सरकार हो रहा है।
जो जग के हितैषी बनते फिरते,
पर्दाफाश़ उनका यही हो रहा है।
आलोचना की तलवार चलाकर हमला,
सरकारों पर नहीं उन फ्रंटलाइनर पर हो रहा है।
कब बनेगी वैक्सीन हर तरफ,
यही शोर हो रहा है।
पर जिन्हें सब को बचाना है,
उनसे कहां किसी को कोई मोह रहा है।
दिन में आग उबलता सूरज,
तो बीच दोपहर ही घनघोर अंधेरा हो रहा है।
कभी कड़कती बिजली तो कभी,
ओलावृष्टि अधिक हो रही है।
मानो पंचतत्वों को अधिक क्रोध आ रहा है,
जिस कारण से प्रकृति में बाधा उत्त्पन्न हो रही है।
इक्कीसवीं सदी का यह साल,
मेरा देश ज़रा कमजोर हो रहा है।
पर हिम्मत और हौसलों का सहारा लिए,
ऐसे में भी मानव बढ़ रहा है।
यह कोरोना का कहर है बस थोड़े दिन का,
कहां आदमी इससे डर रहा है।
घर से बाहर निकलने को,
बेचैन यह मन हो रहा है।
क्वॉरेंटाइन होने से बचने के लिए,
यह सब हो रहा है।
मास्क सैनिटाइजर का इस्तेमाल,
हर तरफ़ हो रहा है।
घर-घर में सभी नियमों का पालन भी अब हो रहा है,
क्योंकि कम इम्यूनिटी वाले व्यक्ति को कोरोना हो रहा है।
पैरों में छाले लिए बेबस,
मजदूर अपने घर को लौट रहा है।
यहां कोई खुद के लिए नहीं अपने अपनों के लिए डर रहा है,
संपूर्ण विश्व महामारी के संकट में भी आत्मविश्वास के साथ लड़ रहा है।
कहीं अम्फान आ रहा है तो कहीं हमला टिड्डो का हो रहा है,
न जाने इस सृष्टि में यह सब क्या हो रहा है।
डिस्क्लेमर: यह कलमकार के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि यह विचार या राय VoxofBharat के विचारों को भी प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां कलमकार की हैं अतः VoxofBharat उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है।