लोग इस मौत को तरसते हैं….

✍Dhirendra Shukla

मौत को मौत समझते हैं,

ऐसा क्यों लोग समझते हैं।

बला है मगर खूबसूरत  है,

लोग इस मौत को तरसते हैं ।                      

मौत को अपनी जां बना बैठा,

वक्त का खुशनुमा तकाजा है।

दूर से दिख रही बारात सी जो,

ये मेरी मौत का जनाजा है।

निकलते थे चुपके जिन राहों से,

चलो अब शान से गुजरते हैं ।

लोग इस मौत को तरसते हैं ।

आज खुश हैं यहां मेरे अपने ,

आज पूरे हुये मेरे सपने।

जुदा है सबसे ये कफन मेरा,

आज जी भर के जी लिया हमने।

काश ये लम्हा बार बार आये,

रुहे अरमान ये मचलते हैं ।

लोग इस मौत को तरसते हैं ।।

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