चीन की कायरता उबाल मार रही है….

Comdt (retd) Sunil k Chopra

भारत चीन कभी दोस्त नही रहे, भविष्य की कह नही सकते। हमारे रिश्ते एक नाजुक, गंभीर, अति संवेदनशील और खतरनाक मोड़ में जा खड़े हुए है। आज सबको यह जानने की उत्सुकता है कि गलवान घाटी में जो हिंसक झड़प हुई उसका भारत सरकार कैसे जवाब देगी….?

हमे थोड़ा अतीत में विचरण कर जानना होगा कि हमारे संबंधों का आधार और उनकी पृष्टभूमि क्या थी।

हमारे दुश्मन को इसने अपना दोस्त बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ी….

चीन कभी भी हमारा दोस्त नही रहा जब भी उसे मौका मिला उसने जहर उगला और सदैव सामरिक चुनौती बना रहा। हमने शुरू से ही आंखे बंद रखी। विकासशील होने के कारण हितों को साध कर एक तरफा शांति मंत्र गाते रहे। भारत को झटका तब लगा जब चीन ने अक्साई चीन पर आधिपत्य जमा लिया। उस समय चीन सीमाओं को लेकर समझौता करना चाहता था लेकिन अपनी ही भूमि के लिए समझौता भारत सरकार करना भारत को उचित नही लगा और यह स्वाभाविक भी था लेकिन 1962 में चीन के हमले के उपरांत भारत चीन के रिश्ते सिमट कर रह गए।

पाकिस्तान तो स्वतंत्रता के बाद से ही दुश्मनी मान बैठा और चीन ने भी पाकिस्तान से अपने रिश्ते बनाने शुरू कर दिए जिससे वह भारत पाकिस्तान के पारंपरिक दुश्मनी का लाभ ले सके। चीन और पाकिस्तान भारत की स्वतंत्रता को हजम नही कर पाए और खुछड़पेंच में लगे रहे। भारत ने प्रजातांत्रिक माहौल में रहते हुए भी इन दोनों देशों को नजरअंदाज करते हुए अपनी आर्थिक शक्ति सुदृढ़ बनाने में  लगा रहा। चीन ने भी पाकिस्तान को लड़ाई के लिए तैयार करना शुरू किया यहां तक परमाणु हथियार भी उपलब्ध करा दिए।

File photo

अब हम समृद्ध हैं….

आज भारत को पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ का सामना करना होगा, भारत इसके लिके सक्षम भी है।

चीन भारत युद्ध 1962 के बाद भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दो बड़ी घटनाएं हुईं….

पहली घटना 1967 में सिक्किम में हुई जिसमें हमारे 88 सैनिक शहीद हुए लेकिन हमारे वीर सैनिकों ने 300 से ज्यादा चीनियों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि स्पष्ट रूप से चीन ने कभी यह माना ही नहीं की इस झड़प के दौरान उनके 300 जवान मारे गए।

दूसरी घटना 1975 में अरुणाचल प्रदेश में जहां छुपकर असम राइफल्स के जवानों पर हमला किया गया। असम राइफल्स के जांबाज जवानों ने चीनियों को खदेड़ कर दम लिया।

जब से अब तक छोटी मोटी झड़प सिक्किम, अरुणाचल में तो हुई लेकिन कुल मिलाकर शांति बनी रही।

चीन ने कभी अपनी स्पष्टता जाहिर नहीं की….

वर्ष 1988 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नीति बदली और कहा समय को देखते हुए हमें चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए और अन्य क्षेत्रों में सहयोग भी होना चाहिए। वर्ष 1993 के बाद पुनः दोनों देशों ने तय किया कि वास्तविक नियंत्रण सीमा पर शांति के लिए आपस मे विश्वास बहाल करेंगे। अब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने अपना रुख उजागर नही किया और जब तब शरारत करता रहता है। चीन ने इस दौरान खुले बाजार में अपना आधार बढ़ाया और संसार के तमाम देशों में व्यापार करने लगा। विश्व की सामान फैक्टरी बन गया चीन और विश्व मे चीन के माल से बाजार पट गए। लोगों ने सस्ते सामान का फायदा उठाया और देशों के उत्पाद पर बहुत विपरीत असर पड़ा।

हमारी आत्मनिर्भरता चीन की आँखों में चुभ रही है….

भारत ने भी अपनी उत्पादन क्षमता को परख कर आत्म-निर्भर बनने की कोशिश की और जापान, ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका में अपनी पैठ बनाई यह भी चीन के दुखी होने का कारण बना। कोरोना ने अमेरिका को डरा दिया तो उसने भी चीन का खुला विरोध किया। अमेरिका से मित्रता तो भारत ने बढाई लेकिन पिछलग्गू नही बना। एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह हम भी अपनी कूटनीति खुद तैयार कर रहे हैं जिसमे अपने हितों को समेट कर उनका ध्यान रखने का प्रयास किया जा रहा है।

चीन के मंसूबे नाकामयाब करने की अब हमारी बारी….

चीन की हिंसक कार्यवाही का हमें पूरी दृढ़ता से मुकाबला करना होगा। चीन का उद्देश्य भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को दाग लगाना है लेकिन हमें अपनी मान मर्यादा की रक्षा स्वयं करनी होगी। वास्तविक नियंत्रण रेखा में चीन की बदलाव लाने की कोशिश को भी नाकाम करना चाहिए जिससे चीन और पाकिस्तान में काराकोरम रोड पर हमारी नजर बनी रहे और भारत सामारिक दृष्टि से उपयोगी क्षेत्रों को संभाल सकें।

याद रहे भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से लड़ कर अपने विकास का रास्ता बनाना है जो कठिन तो है लेकिन असंभव नही।

कलमकार सशस्त्र सीमा बल  के रिटायर्ड अधिकारी हैं।

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