लॉकडाउन खुलते ही बढ़ने लगा प्रदूषण, साफ हवा के लिए ऑनलाइन आंदोलन…
आशीष कुमार ‘अंशु’
लॉकडाउन खुलते ही देशभर में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है। कुछ दिन राहत की सांस लेने वाले भारतीय एक बार फिर घुटन वाले माहौल में जीने के लिए विवश हो रहे हैं। हाल ही में IIT दिल्ली के एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर लॉकडाउन के दौरान भारत में कम प्रदूषण के स्तर को बनाए रखा जाता है, तो यह देश में लगभग 6.5 ज़िंदगियों को बचाया जा सकता है। यही वजह है कि पर्यावरण को लेकर चिंतित आम आदमी और संस्थाएं आगे आ रही हैं। साफ हवा को बनाए रखने के लिए भारत सरकार से स्पष्ट व लागू होने वाले कार्यक्रम की मांग कर रहे हैं। इसके लिए ऑनलाइन आंदोलन की मुहिम शुरू करने जा रहे हैं।
तय किया गया है कि आगामी 5 जून को लोग विश्व पर्यावरण दिवस पर ‘’स्वच्छ हवा के लिए’’ स्लोगन के साथ अपने शहर का फोटो साझा करें और देशव्यापी डिजिटल आंदोलन में भाग लें। साथ ही एक ऑनलाइन पिटीशन अभियान भी चलाया जा रहा है जिसमें यह पूछ गया है कि सरकार स्वच्छ हवा को सुनिश्चित करने के लिए क्या किसी खास को यह जिम्मेदारी दे रही है क्या? इस आंदोलन का नेतृत्व महाराष्ट्र की सामाजिक संस्था झटका सहित देशभर की कई संस्थाएं कर रही है।
जानकारी के मुताबिक बीते 25 मार्च से हुए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण 30 करोड़ से अधिक गरीबों को अकल्पनीय पीड़ा सहनी पड़ रही है। लाखों मजदूर पैदल ही अपने घर जाने को मजबूर हैं। वो हजारों किलोमीटर की यात्रा पैदल ही कर रहे हैं, लेकिन इस बीच सड़कों पर लाखों कारों के साथ, कारखानों को बंद रखना पड़ा है। निर्माण और आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के कारण इस दौरान भारत को दो दशकों में सबसे स्वच्छ हवा मिली है।
जबकि इससे पहले हालात ये थे कि दुनिया के टॉप 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में तो 21 भारत के थे। लॉकडाउन के दौरान एयर इंडेक्स क्वालिटी (AQI) में लगातार गिरावट देखी जा रही है। दिल्ली जैसे शहर में सर्दियों में इसका स्तर 400 के पार था, वहीं लॉकडाउन के दौरान यह 60 के आसपास दिख रही है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या हमें स्वच्छ हवा पाने के लिए महामारी का सहारा लेना चाहिए?
देश के 122 शहर स्वच्छता के राष्ट्रीय मानक को नहीं करते हैं पूरा…
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अनुसार भारत में 122 ऐसे शहर हैं जो स्वच्छ वायु के राष्ट्रीय मानक के गुणवत्ता को पूरा नहीं करते हैं, इसमें 18 शहर तो केवल महाराष्ट्र के हैं। इन शहरों के लोगों को खासतौर पर इस आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील सामाजिक संस्था झटका करती है, साथ ही दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करने की अपील करती है। सालभर 60 की मांग के माध्यम से लोग सरकार पर दवाब बना सकते हैं, ताकि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी भारत के लोगों को स्वच्छ हवा मिले, इसके लिए ठोस रणनीति बनाया जाए।
फोटो में देहरादून की 12 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता रिद्धिमा पांडे शामिल हैं। ये वही रिधिमा हैं जो जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की दिशा में सरकारों की निष्क्रियता पर पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में याचिका देने वाली 16 बच्चों (ग्रेट थुनबर्ग के साथ) में से एक थीं।
भारत के लॉकडाउन के 60वें दिन (23 मई) सामाजिक संस्था झटका की तरफ से एक वीडियो जारी किया गया, सालभर 60 शीर्षक से जारी इस वीडियो का उद्देश्य लोगों तक इस स्वच्छ हवा के संदेश को पहुंचाना है।
संस्था की कैंपेन मैनेजर शिखा कुमार कहती हैं, “इस हफ्ते, लॉकडाउन मानदंडों में ढील दी गई थी। दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का स्तर 200 तक पहुंच गया था। यह दिखाता है कि लॉकडाउन की दुनिया में हम कितने डरे हुए हैं, जबकि इस दौरान हमने देखा कि प्रकृति कैसे खुद को ठीक करने की प्रक्रिया शुरू करती है, अब आगे क्या होगा? क्या हम वापस फिर जहरीली हवा खाने जा रहे हैं? हमने समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। जैसा कि NCAP जैसी पहल से स्पष्ट है, लेकिन हमें सालभर60 के लिए ठोस राज्य-वार योजना और कार्यान्वयन की आवश्यकता है। इसके लिए इससे बेहतर समय कुछ और नहीं हो सकता।’’
वहीं रिद्धिमा पांडेय कहती हैं स्वच्छ हवा हमारा बुनियादी अधिकार है। उनके मुताबिक, “पिछले दो महीनों में, ऐसा महसूस हुआ है कि मेरी पीढ़ी की सारी चीजें हमें उपहार में मिली हैं। नीला आसमान, कम उत्सर्जन, स्वच्छ हवा। इसका मतलब केवल यह है कि सालभर 60 संभव है. हमारी सरकार को इसे आपातकाल की तरह मानने की जरूरत है। साथ ही प्रदूषण के स्तर को नीचे लाने के लिए सख्त समय सीमा का भी पालन करना होगा।’’
सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़े के सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक डॉ अरविंद कुमार कहते हैं, कोविड-19 महामारी ने हमें दो चीजें दिखाई हैं। पहला यह कि हम भी स्वच्छ हवा पा सकते हैं। दूसरा, खराब हवा हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकती है, जिससे बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। हार्वर्ड और इटली के अध्ययनों ने अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में कोविड-19 मामलों और मृत्यु दर की काफी अधिक संख्या दिखाई है। भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर हमारे बच्चों की भलाई के लिए एक बड़ा खतरा है। हमें सभी के लिए स्वच्छ हवा का लक्ष्य रखना चाहिए।
भारत की कई सामाजिक संस्थाएं इस डिजिटल आंदोलन को अपना समर्थन दे रही है। इसमें लेट मी ब्रीथ, फ्राइडे फ़ॉर फ्यूचर, लेट इंडिया ब्रीथ, ग्रीनपीस इंडिया, वतावरन फ़ाउंडेशन, हेल्प डेल्ही ब्रीथ, माय राइट टू ब्रीथ, कोलकाता क्लीन एयर फ़ोरम, मुंबई का आरे समूह, आवा फ़ाउंडेशन सहित कई अन्य संस्थाएं शामिल हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)