मजदूर का सफ़र…

पूजा कुमारी “धानी”

सफ़र करना हमारी नियति में है,
पाँवों के ये ज़ख़्म सफ़र के छाले नहीं।

कोई यूँ ही फेंक देता है दूध-भात का कटोरा,
हमारे हिस्से में कभी तो सुखे निवाले नहीं।

मज़दूर हैं हम मजबूर तो नहीं, भले ही स्याह हो राहें,
मगर ये न समझिए कि हमारे हिस्से में उजाले नहीं।

गति है हम जैसे श्रमिकों से व्यवस्था में,
इस व्यवस्था की कड़ी हैं हम कोई निराले नहीं।

2 thoughts on “मजदूर का सफ़र…

  • June 13, 2020 at 6:30 pm
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    वेदना को शब्दों में बख़ूबी बयां किया है धानी जी आपने

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