तो क्या ये है सुशांत की मौत की वजह….

Poonam Masih

सुशांत का यूं सबकुछ छोड़कर चला जाना बहुतों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है।  रह रहकर हर किसी के मन में यही सवाल उठ रहा है आखिर क्यों….? ऐसी कौन सी परेशानी थी जो जीने से ज्यादा मरना अच्छा लगा। जिसने एक चमकते सितारे को एक मिनट में ही सबसे दूर कर दिया। सुशांत के मरने के बाद से ही उनकी आत्महत्या करने के पीछे के कारण को तलाशने की कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी ओर उनके घरवालों का कहना है कि वह आत्महत्या नहीं कर सकता है इसके पीछे के कारण की जांच होनी चाहिए।  इस तरह की डिमांड सिर्फ उनके परिवार वाले ही नहीं कर रहे बल्कि उनको चाहने वालों की भी यही मांग है कि सुशांत को जीते जी, जो इंसाफ न मिल पाया वह अब जरुर मिल पाए।

इन सबके बीच उनकी आत्महत्या पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। वह डिप्रेस्ड थे यह बात तो अब स्पष्ट हो चुकी है क्योंकि उनके रुम से इसकी दवाइयां मिली हैं। इसके अलावा कई जानकारों के बयान भी इस बात की ओर इशारा करते हैं। बॉलीवुड में इस वक्त हलचल मची हुई है। कोई कहता है इस प्रकार की अनहोनी का पहले से अंदाजा तो कोई कह रहा है किसी ने उनका साथ नहीं दिया। एक तरफ नेपोटिज्म की चर्चाएं चरम पर है तो कहीं पर लोग आगे आकर इसी बहाने अपनी बात को आगे रखने की कोशिश कर रहे हैं।

पिछले तीन महीने के लॉकडाउन ने लोगों पर मानसिक प्रभाव तो डाला ही है। और सुशांत तो पहले से ही इस बीमारी से जूझ रहे थे  इस पर यह अकेलापन उनकी जान पर हावी पड़ गया। मौत के कई कारण गिनाए जा रहे हैं कोई कहता है उन्हें फिल्म नहीं मिल रही थी तो कोई कह रहा उनके लिए कुछ लोग साजिश करते थे। लेकिन एक कारण जो सबसे ज्यादा सुर्खियों में वह है महेश भट्ट  के साथ काम करने वाली लेखिका सुह्रता सेनगुप्ता का बयान। जिसमें उन्होंने बताया कि पिछले एक साल से सुशांत ने अपने को बाहरी दुनिया से अलग कर लिया था। उन्हें अजीब सी आवाजें आती थी। हालात यहां तक बुरे थे कि उन्हें लगता था कि कोई उन्हें मारना चाहता है। रिया चक्रवर्ती को भी उन्होंने एक बार कहा कि मैंने अनुराग कश्यप की मूवी को मना कर दिया है। अब वो मुझे मार देगा।

फिल्म छिछोरे का एक द्रश्य

डिप्रेशन की यह बहुत ही बुरी स्टेज है जहां लोगों को सिर्फ दवा के दम पर ही बचाया जा सकता है। लेकिन सुशांत ने तो दवा लेनी भी बंद कर दी थी। ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है अभिनेत्री परवीन बॉबी को भी यही समस्या थी। आम लोगों की  बात करें तो मैंने अपने एक करीबी के साथ भी ऐसी ही समस्या देखी है। उन्हें भी कभी-कभी ऐसा लगता था जैसे कुछ लोग उनके कान में बोलते है। कहते हैं हम तुम्हें अपने साथ ले जाएंगे। अजीब सा डर लगता था। जब तक रात को दवा नहीं खाते तब तक सो पाना मुश्किल होता था। और अगर दवा नहीं तो शराब का सहारा लेना पड़ता था। दवाई की डिमांड इतनी थी कि घर के दो तीन जनों को तो उस दवा का नाम तक रट गया था। और दुकानदार भी हमारे चेहरों से वाकिफ हो गए थे, इसलिए नाम लेते ही दवा दे देते थे। लंबे समय तक वह इस परेशानी से लड़ते रहे। परेशानी इस हद तक थी कि कभी-कभी अकेले सोने में भी डर लगता था। रात में खिड़की के बाहर देखने की हिम्मत नहीं होती थी। जबतक रात को गोली न खाते नींद आनी मुश्किल हो जाती थी। लंबी लड़ाई के बाद एक दिन उनकी मृत्यु हो गई।

सुशांत के साथ अगर सच में यही प्रॉब्लम थी तो उनका अकेला रहना और दवा न खाना ही उनकी मृत्यु का एक कारण हो सकता है। मैं कोई साइकोलॉजिस्ट नहीं हूँ अपने अनुभव के हिसाब से सारी बातें बता रही हूं। क्योंकि अपनी जिदंगी के लगभग 10-15 साल मैंने इस परेशानी को देखा है। बचपन में यह सारी चीजें समझ नहीं आती थी। लेकिन आज जब सुशांत के बारे में  ये सारी चीजें सुनी तो दिमाग एकबार वहीं जाकर रुक गया। क्योंकि जैसी बातें सुह्रता सेनगुप्ता बता रही थी ठीक वैसी ही चीजें मैंने देखी है। इसलिए यह कहना कि यही एक मात्र कारण है, सही नहीं है।

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