टिड्डी दल: एक और मुसीबत…

योगिता यादव

DESERT LOCUST या टिड्डी एक ऐसा समूह जिसने किसानों से लेकर आम जनता तक को परेशान करना शुरू कर दिया है। कोरोना वायरस से जूझ रहे भारत के लिए टिड्डियों ने एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है। इन हमलों ने हमें एहसास दिलाया है कि एक छोटा सा जीव कितना नुकसान कर सकता है। अब तक टिड्डी दल राजस्थान, पंजाब ,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में सक्रिय है। राजधानी दिल्ली समेत हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में प्रशासन ने पहले से ही अलर्ट जारी कर दिया गया है। भारी चेतावनी मिलने के बावजूद कई क्षेत्रों में इनके हमलों से काबू पा पाना मुश्किल होता जा रहा है। अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, झारखण्ड, उड़ीसा, उत्तराखंड में टिड्डी दल के हमले का खतरा बना हुआ है। तो आइए जानते हैं कि आखिर इस जीव से हमें इतना परेशान होने की जरूरत क्यों है?

कहां से आई हैं यह टिड्डियां

भारत के लिए यह कोई नई मुसीबत नहीं है, इसके पहले भी टिड्डी दल राजस्थान, गुजरात समेत कई अन्य राज्यों में छोटे पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचाता रहा है, लेकिन इस बार भारत के कई राज्यों में न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि विभिन्न शहरों में भी इनका प्रकोप देखा गया, जैसे कि जयपुर, झाँसी, ललितपुर, मंदसौर इत्यादि। टिड्डी असल में ओमान के रेगिस्तान से जन्मी है। दरअसल 2018 में ओमान के रेगिस्तान में एक साइक्लोन आया, इसी साइक्लोन की वजह से वहां टिड्डियों के लिए परफेक्ट ब्रीडिंग ग्राउंड यानी कि सबसे उत्तम प्रजनन क्षेत्र बना। जहां धीरे-धीरे ब्रीडिंग कर टिड्डी दल तैयार हुआ। ओमान के रेगिस्तान से निकल यह दल यमन की ओर बढ़ा फिर सोमानिया और बाकी ईस्ट अफ्रीकी देशों तक पहुंचा। वहीं दूसरी तरफ ईरान, सऊदी अरब और यमन से टिड्डियों का एक अलग झुंड निकला। ईरान की तरफ से निकला यह झुंड अब पाकिस्तान और भारत में घुसा है।

टिड्डियाँ अपनी आबादी बढ़ाने में बहुत तेज़ मानी जाती है। थोड़ी सी गीली मिट्टी मिलते ही यह अंडे देना पसंद करते हैं, यही वजह है जिसके कारण अच्छी खासी बारिश होने के बाद टिड्डियां तेज़ी से प्रजनन करती है। टिड्डियाँ एक मीटर जमीन पर 1000 अंडे तक बिछा सकती है, यही टिड्डियाँ अपने अंडों से बाहर निकलने के बाद अपने काम पर जुट जाती हैं। यूं तो रेगिस्तानी टिड्डी 40 से 85 दिन तक ही जिंदा रहती हैं, पर 40 से 85 दिन के जीवन काल में ही यह बड़ा आतंक मचा देती है। जैसे ही टिड्डियाँ अंडे से बाहर निकलती हैं आसपास की फसल चट कर फिर खाने की तलाश में निकल पड़ती हैं। एक अनुमान के अनुसार जून माह तक टिड्डियों की आबादी लगभग 500 गुना बढ़ जाएगी। जोकि भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है।

एक अकेला टिड्डी अपने पूरे दल से व्यवहार मे काफ़ी अलग पाया जाता है। इसका मतलब है कि टिड्डियां जब भी एक समूह में होते हैं तो उनका व्यवहार बदल जाता है। मानव जाति के लिए नुकसानदेह यह टिड्डी दल एक घंटे में लगभग 16 से 19 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है। अगर तेज हवाएं इनका साथ दे तो अनुमानित इस दूरी को यह और भी बढ़ा सकते हैं । एक एडल्ट (वयस्क) टिड्डी का वज़न लगभग 2 ग्राम का होता है। टिड्डी दल कोई दस बारह टिड्डियों का समूह नहीं है यहां एक किलोमीटर के टिड्डी दल में करीब 4 करोड़ टिड्डियां होती हैं और एक टिड्डी अपने वजन के बराबर का खाना खाती है। टिड्डी दल 1 दिन में उतना खा लेती हैं जितना 35 हज़ार लोग एक दिन में खाएंगे। यही कारण है जिसके चलते कृषि विभाग, आम जनता और खासकर किसानों के लिए टिड्डी दल परेशानी का सबब बना हुआ है।

जैसा कि साफ जा़हिर है कि टिड्डी दल की उत्पत्ति ओमान के रेगिस्तान से होती है। हिंद महासागर में भी साइक्लोन आने से रेगिस्तान में बारिश होने लगी थी जिसकी वजह से वहां टिड्डियाँ पैदा हुई। लाखों की तादाद में पैदा हुई यह टिड्डियां भारत में अप्रैल महीने के बीच में राजस्थान से इनका प्रवेश हुआ। तब से लगातार भारत के अन्य राज्यों में फेवरेबल कंडीशंस मिलने के कारण यह तेज़ी से अपनी आबादी बढ़ाने में सफल हो गयीं। धीरे- धीरे अपने समूह बनाकर भोजन की तलाश में पंजाब, मध्य प्रदेश गुजरात एवं अन्य राज्यों के कुछ हिस्सों तक फैल गई। अपने समूह में मौजूद होने के कारण एकत्रित होकर यह टिड्डियाँ फसल को भारी मात्रा में नष्ट कर देती हैं।

टिड्डी दल के तेज़ी से प्रजनन और कम समय में कई किलोमीटर की दूरी तय करने की क्षमता के अनुसार हम अनुमान लगा सकते हैं कि टिड्डी दल किस प्रकार अपने रास्ते में पड़ने वाली हजारों एकड़ की फसल को चट कर जाता है। इस हमले से खाद्यान्न का संकट तो पैदा होता ही है साथ ही किसानों की माली हालत भी बेहद खराब हो जाती है। जिसके कारण इंसान इन्हें काबू करने के लिए इन पर केमिकल्स का इस्तेमाल करता है।

टिड्डी दल से बचाव का रास्ता….

टिड्डी दल से बचाव का फिलहाल हमारे पास एक ही तरीका है कि उन्हें आबादी बढ़ाने से पहले ही मार दिया जाए। एक ओर जहां हम इन्हें नष्ट कर देना चाहते हैं वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो टिड्डियों से व्यंजन बनाकर खाते हैं। जी हां !! आपको जानकार हैरानी होगी कि साल 2013 में जब इजराइल में टिड्डियों ने हमला किया तो वहां के लोगों ने उन्हें मारकर खाना शुरु कर दिया। वहां यह व्यंजन के रूप में परोसे जाने लगा। कंबोडिया में टिड्डी में मूंगफली का दाना भरकर भूना जाता है, फिर खाया जाता है। कहीं शेफ इसे डीप फ्राई करके परोसने लगे ,तो कहीं इसके पैर और पर निकालकर। युगांडा में इसे कटे प्याज और मसालों के साथ पकाकर खाया जाता है, वही फिलिपिंस में सॉय सॉस के साथ भी लोग इसे खाना पसंद करते हैं।

हालांकि भारत में बड़े ही सरल तरीके से इन्हें मारा व भगाया जाता है:-

टिड्डियों के ऊपर रासायनिक छिड़काव किया जा सकता है, यानी क्‍लोरफाइरीफास, हेस्‍टाबीटामिल और बेंजीएक्‍स्‍टाक्‍लोराइड दवा का छिड़काव भी खेतों में किया जा सकता है।
टिड्डी दल बड़ी तादाद में खाली पड़े खेतों में अंडे देता है। इसलिए इनसे बचने के लिए खेतों की गहरी जुताई कर उनमें पानी भर दिया जाए। ऐसा करने से अंडे खत्‍म हो जाते हैं।
टिड्डी दल को भागने के लिए पारंपरिक तरीके जैसे कि थाली बजाना, धुंआ करना इत्यादि कारगर साबित होते हैं। इसके साथ ही ढोल, कनस्तर, लाउडस्पीकर या दूसरी अन्य तरीकों के माध्यम से शोर मचाएं। शोर सुनकर कर टिड्डी दाल भाग जाता है।
टिड्डी दल को आगे बढ़ने से रोकने के लिए 100 कि.ग्रा धान की भूसी को 0.5 कि.ग्रा फेनीट्रोथीयोन और 5 कि.ग्रा गुड़ के साथ मिलाकर खेत में डाल दें। इसके जहर से वे मर जाते हैं।

हालांकि यह कहने में अभी जल्दबाजी होगी कि टिड्डी दल भारत में अपनी जड़े कब कमजोर करता है, क्यूंकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जून में भी टिड्डी दल द्वारा और भी भीषण आक्रमण हो सकते हैं।

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