एक बिहारी का सुशांत सिंह राजपूत के नाम खुला पत्र….
✍ अमन कुमार आकाश
सुशांत,
सिर्फ तुम्हारे पैरों तले स्टूल नहीं खिसकी है, पूरे बिहारियों के पैरों तले जमीन खिसकी है। हमारा सैकड़ों बरसों का गुमान एक झटके में बिखर गया। “बिहारी इस तरह मरा नहीं करते” This is not fair, man!!
जीवनभर सँघर्ष की भट्टी में तपकर बनता है कोई बिहारी। आखिरी सांस तक हार नहीं मानकर बनता है कोई बिहारी। कोई बिहारी इसलिए बिहारी नहीं है कि वो बिहार से है, कोई बिहारी इसलिए बिहारी है कि वो ढीठ है। ऐसा नहीं है “ऐ बिहारी बावले लौंडे, ऐ बिहारी तेरी माँ की” सुनकर उसका खून नहीं खौलता लेकिन वो अनसुना करता है, मुस्कुरा देता है। पैदा होने से लेकर आजतक उसने ऐसी विपरीत परिस्थितियों में खुद को संभाला है कि इन सब बातों को वो दिल से ही नहीं लगाता। ऐसा नहीं है वो कमज़ोर है, कोई बिहारी जब हथौड़ी-छेनी उठा लेता है तो पहाड़ का घमंड तोड़कर ही रुकता है। वह कड़ी धूप में रिक्शा खींच लेता है, ईंटें ढो लेता है, रेहड़ियां लगा लेता है लेकिन हार नहीं मानता। विपरीत परिस्थितियों में भी डटा रहता है।
सरकारें आयी, सरकारी गयी हमारे संघर्ष कम नहीं हुए। संघर्ष को हमने अपने हाथों की रेखा मान ली। घर-घर से पटना, पटना से दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, बिहारी जहां भी गया उसने अपने को उस माहौल में ढाल लिया। कोरोना जैसी वैश्विक विपरीत परिस्थितियां आयी। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, गुजरात ने पहचानने से इनकार कर दिया। बिहारी ने गहरी सांस ली। झोला समेटा और पैदल निकल पड़ा। 1200-1300 किलोमीटर दूर अपने घर के लिए। आग बरसाता मौसम, डंडे बरसाते पुलिसवाले। सबको झेलकर बिहारी घर आ गया। ऐसे राज्य में जहां की प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम है। जहां उसे करने को कोई काम मिलेगा कि नहीं इसका भी कुछ पता नहीं था। लेकिन वह डटा रहा, अड़ा रहा।
This is not fair, Man!!
सुशांत तुम शायद कोसी क्षेत्र से थे ना…? वहां के बच्चे-बच्चे भी बाढ़ की भयानक त्रासदी को चुल्लू में भरकर पी जाते हैं। इससे भी बड़ी त्रासदी थी क्या तुम्हारे जीवन में कि ऐसा कदम उठाना पड़ा। तुम आदर्श थे यार हमारे। हम बिहारियों के। तुम्हारी लाइफ, तुम्हारा संघर्ष, तुम्हारी सफलता सबको हमने सर-आंखों से लगाया था। सुशांत, अपने जीवन की सुंदर कहानी का तुमने अपने हाथों दुखांत कर लिया है। कुछ नहीं कहूंगा। इरफ़ान साहब की रुखसती का ग़म था, तुम्हारे इस तरह जाने का गुस्सा है। और हो भी क्यों ना,
सिर्फ तुम्हारे पैरों तले स्टूल नहीं खिसकी है, पूरे बिहारियों के पैरों तले जमीन खिसकी है। हमारा सैकड़ों बरसों का गुमान एक झटके में बिखर गया है। बिहारी इस तरह मरा नहीं करते सुशांत। This is not fair, man।।!!
मन झकझोर गईल