छुआछूत नहीं, मानव अस्तित्व की प्रक्रिया हैं “पीरियड्स”
श्रुति दीक्षित
देश में भले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े विषय पर बहस हो लेकिन पीरियड पर लोग आज भी खुलकर बात करने से कतराते हैं। भारत ऐसा देश है जहां लड़कियां अपने पूरे जीवन में औसतन 3000 दिन पीरियड्स का सामना करती है, हर रोज इस दुनिया की करीब 30 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं। महिलाओं के जीवन का सबसे अहम स्वास्थ्य और सामान्य सा हिस्सा होने के बावजूद भी लड़कियां इस बारे में जिक्र तक करने से झिझकती है और इसी मासिक धर्म पर चुप्पी तोड़ने के लिए 2014 से हर वर्ष 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य है महिलाओं को जागरूक करके उन तक मासिक धर्म में खुद की स्वच्छता बनाए रखने का संदेश देना। 28 मई को मनाए जाने के पीछे भी एक कारण यह है कि आमतौर पर मेस्टुअल साइकिल 28 दिनों की होती है और एनिमल 5 दिन के लिए होती है इसीलिए यह हर साल 5वें महीने की 28 तारीख को मनाया जाता है।
वर्ष 2020 एक ऐसा साल है जिसे कोई भी भुला नहीं सकता, 2020 जिसका नाम लेते ही पूरी दुनिया भर में सिर्फ एक ही चीज जहन में आती है…जी हां और वह है महामारी कोरोना वायरस! इस महामारी ने लगभग हर देश की रफ्तार को धीमा कर दिया है, लेकिन इस बीच जो ना थमा है और ना थमेगा वह है मासिक धर्म। “विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस” के अवसर इस वर्ष की थीम रही Periods in Pandemic… इतना ही नहीं, इस साल UNICEF ने महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर समाज में फैली गलत धारणाओं को तोड़ने के लिए रेड डॉट चैलेंज अभियान चलाया… जिसमें सेलिब्रिटी के साथ आम लोगों ने भी रेड्डॉट बनाकर मासिक धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ाने की मुहिम को सपोर्ट किया। UNICEF की माने तो कोविड 19 संकट के बीच मासिक धर्म और स्वच्छता के मुद्दे के महत्व को पहचानने और किशोर लड़कियों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर ध्यान देने के लिए RED DOT चैलेंज की शुरुआत की जिसमें लगभग 32 लाख से ज्यादा लोगों ने समर्थन किया।
सेनेटरी पैड को लाना किसी टास्क से कम नहीं…
यह प्राकृतिक और सामान्य सी हर महीने होने वाली प्रक्रिया के लिए आखिर एक दिन विशेष रखने की जरूरत ही क्यों है? ऐसे में सवाल कोई नया नहीं है और ना ही यह सिर्फ मासिक धर्म के नाम पर उठा है, बल्कि यह सवाल हमारे समाज पर कई प्रश्न खड़े करता है। यह सवाल उसके दोहरे चरित्र को बेनक़ाब करता है। जहां एक तरफ समाज ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ और ‘महिला सशक्तिकरण’ नारे बुलंद करता है, वहीं दूसरी तरफ पीरियड के नाम पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि में जाने पर पाबंदी भी लगाता। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के साथ शहरों में औरतों तथा लड़कियों को मासिक धर्म के वक्त पर धरती पर सुलाया जाता है। रसोई से बेदखल किया जाता है, मानो कोई पाप कर दिया हो। इतना ही नहीं महिलाओं का सेनेटरी पैड को दुकान से घर तक लाना किसी टास्क से कम नहीं, पहले तो दबी हुई आवाज में दुकानदार से सिर और आंखों को नीचे करके सैनिटरी पैड की मांग करना। जिसके बाद दुकानदार द्वारा उसको पेपर या फिर काली पॉलीथिन में देना, देखने में ऐसा लगता है कि महिला ने दुकानदार से सैनिटरी नैपकिन नहीं बल्कि एक बम की मांग की हो। यह लोगों की मानसिकता को दर्शाता है कि आज भी एक महिला का मासिक धर्म तथा सेनेटरी पैड से जुड़ी बात करना शर्म की बात है और इसे गुप्त ही रखना चाहिए।
आखिर क्यों आजादी के इतने सालों बाद भी हमारे घर की महिलाओं बेटियों को दकियानूसी बातों को सुनना पड़ता है। अपने दर्द को नजरअंदाज करना पड़ता है, सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारा समाज आज भी मासिक धर्म को महज एक छुआछूत की नजर से देखता है। जबकि दूसरी तरफ जब एक स्त्री माहवारी की समस्या से गुजरती है तो शर्मिंदगी के चलते लोगों को नहीं बता पाती कि उसे दर्द हो रहा है और उसे छुपाना पड़ता है।
आज आवश्यकता है समाज को इसे वैज्ञानिक दिशा देने की, ना कि इस प्रक्रिया को स्त्री की पवित्रता से आकने की। जिसका जिक्र करना भी गलत है, जिसके कारण आज भी कई घरों में माताओं और बहनों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। जिससे इतना तो साफ है कि यह मुद्दा शर्म का हकदार नहीं है और ना ही नजरअंदाज करने का….यह मुद्दा तो है अपनी घर की औरतों से बात करने का, ऐसे वक्त में उनके दर्द को समझने का, उनका ख्याल रखने का! यदि हमारा समाज यह सब करने में सक्षम हो जाए तब असल में महिला सशक्तिकरण के पड़ाव को पार कर सकेंगी, क्योंकि हमारा समाज स्त्री और पुरुष नामक दो मजबूत व्यक्तित्व से बना है। समानता और मनुष्यता कायम करने की जिम्मेदारी स्त्री तथा पुरुष दोनों की है। मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़ियों को पूरी तरह से समाप्त करने का सपना तभी साकार हो सकता है। जब हर मनुष्य इस समस्या को जड़ से मिटाने की जिम्मेदारी लें, हर एक व्यक्ति इस प्रक्रिया पर बात करें, ना कि शर्म करें। अंत में सिर्फ एक ही बात मासिक धर्म आना शर्म की बात नहीं…. यह आपकी बेटी, बहन का किशोरी से महिला की ओर बढ़ने का पहला कदम है।