पर्यावरण दिवस: सोशल स्टेटस के चक्कर में भावी पीढ़ी की सांसें न छीने…

देवेश पी. सिंह

उत्तराखंड। माता-पिता से उसके बाद ऑनलाइन पर्यावरण के दूषित होने की जानकारी जुटाकर पर्यावरण के संरक्षण हेतु अपने बचपन को समर्पित करने वाली एवं तुर्की, अर्जेंटीना, फ्रांस, जर्मनी और ब्राजील के खिलाफ क्लाइमेट चेंज से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज कराने वाली भारत की बेटी (Environment Activist) रिद्धिमा पाण्डेय से VoxofBharat की खास बातचीत-

पर्यावरणविद् बनने के लिए आपको प्रेरणा कहाँ से मिली?

दरअसल हमारे राज्य उत्तराखंड में 2013 में एक त्रासदी आई थी, मैं उस त्रासदी को देखकर काफी परेशान हुई या फिर यों कहें कि वह एक ऐसी घटना थी जिसने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया था, मैं यह जानना चाहती थी कि ये बाढ़ क्यूँ आई? यह सब कैसे हुआ? मैंने ऑनलाइन इसकी जानकारी जुटानी शुरू की, मेरी मम्मा ने मुझे इसके बारे में काफी कुछ बताया, उन्होंने समझाना शुरू किया। इस तरह से क्लाइमेट को लेकर मेरा इंटरेस्ट बढ़ता गया, मैंने यह भी जाना कि क्लाइमेट चेंज का एकमात्र नुकसान फ्लड नहीं है और भी बहुत सारे ऐसे नुकसान हो सकते हैं जो हमें निकटतम भविष्य में भुगतने पड़ सकते हैं।

क्या आपके परिवार में पहले भी किसी ने पर्यावरण से जुड़ कर काम किया है?

हाँ आप ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि मेरे पिता जी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करते हैं।

इस समय पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या और इसे कैसे दूर किया जा सकता है?

भारत के लिए इस समय पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा मैं सरकारों को मानती हूँ, अभी हमने हाल ही में देखा कि lock down के समय पूरे विश्व में जिस तरह से स्वच्छ हवा का बहाव हुआ और वातावरण में हानिकारक तत्वों में कमी आयी। इस बात को पूरी दुनिया ने एक मिसाल के तौर पर लिया लेकिन हमारे यहाँ अभी भी Economic Development, बाँध बनाने, कोयले की खदानों के लिए हरे-भरे पेड़ पौधों की बलि देना जारी है, तो सरकार के विकास कार्य हमारे पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचा रहे हैं। इस स्थिति में सरकार हमारे जंगलों के लिए एक खतरा है, क्योंकि सरकारें सिर्फ और सिर्फ इकनोमिक डेवलपमेंट पर ध्यान दे रही हैं वो लोग यह नहीं सोच रहे कि पेड़ कटने से कितनी ज्यादा बायोडायवर्सिटी को नुकसान होगा? कितने ज्यादा जानवरों का ये घर रहा होगा? एक पेड़ कटता है तो कितने लोगों की सांसे छिन जाती हैं ये भी सरकार को मालूम होना चाहिए क्योंकि पेड़ carbon taking machines हैं। समय की मांग के अनुसार मैं यही कहना चाहूंगी कि Environmental Development is much Important than Financial Development. Development और Environment एक दूसरे के साथ भिड़े हुए हैं, इस स्थिति में हमें Sustainable Development की ओर ध्यान देना होगा। अभी आप देख सकते है सरकार के इस रवैये के कारण सबसे ज्यादा बच्चों को दिक्कतें होतीं हैं जिनका कोई दोष भी नहीं है। कुछ बच्चे जन्म से ही किसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं तो कुछ बच्चे दूषित पर्यावरण के कारण जन्म ही नहीं ले पाते हैं।

क्या तकनीक आपके प्रयास में सहायक हो सकती है?

बिलकुल तकनीक हमारे पर्यावरण को बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, कोरोना महामारी के दौरान हम सब इस समय अपने-अपने घरों में कैद हैं लेकिन पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने में हम विभिन्न तकनीकी माध्यमों से लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं, सोशल मीडिया की ताकत को हम भी समझते हैं और हम पर्यावरण के प्रति जागरूकता सम्बन्धी संदेशों को संप्रेषित करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग भी करते हैं।

आपके कुछ कार्यक्रम जिन पर आपको सफलता मिली हो….

केरल के कुन्नूर में हमने एक आन्दोलन चलाया था, जिसमे सरकार को पीछे हटना पड़ा था, दरअसल उस वक्त मैं केरल में ही थी पर्यावरण को लेकर एक मीटिंग में गयी थी। P oil नाम से सरकार एक प्रोजेक्ट वहां लाने वाली थी, इस प्रोजेक्ट के तहत वहां कच्चे तेल के भण्डारण का कार्य किया जाना था जिससे वो पूरा क्षेत्र प्रभावित होने वाला था। मरीन लाइव को भी नुकसान पहुँचने वाला था, वहां के स्थानीय रहवासियों को हर तरह से यह प्रोजेक्ट नुक्सान पहुँचाने वाला था। मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन कई हजार एकड़ जमीन पर यह प्रोजेक्ट वहां आने वाला था। स्थानीय रहवासियों के साथ अंततः हमारे प्रयास सफल हुए और लोगों की बात सरकार ने मानी और वह प्रोजेक्ट वहां से हटा लिया गया।

अभी इस समय मैं एक कैंपेन लांच कर रही हूँ इसका नाम है “साल भर साठ” जिसकाएक ही मकसद है की लोगों को साल भर साफ़ हवा मिले, जिस तरह से lock down के दौरान हमने देखा कि जब रोड पर वाहनों का आवागमन रुका, फैक्ट्रियों में काम रुका तो पर्यावरण में स्वच्छ हवा बहने लगी, ये हमारे लिए एक अवसर के समान था, इसलिए हमने सोचा क्यूँ न इस पर आगे के भी विचार किया जाय और साल भर में 60 दिन वाहनों के आवागमन और फैक्ट्रियों में काम पर पूर्ण रूप से नियंत्रण लगाया जाय। इस कैंपेन में हम बच्चों, बड़ों को सबको जोड़ रहे हैं और आगे चलकर सरकार के विभिन्न मंत्रालयों जैसे कि स्वास्थ्य, पर्यावरण इत्यादि तक हम अपनी बात को पहुंचाएंगे, वायु प्रदुषण हमें कई तरह से नुकसान पहुंचाता है इसलिए हम इसके लिए निश्चित तौर सरकार को शिकायत भी करेंगे और उन पर अपनी बात पहुंचकर “साल भर साठ” के फायदे भी बताएँगे। Vox of Bharat के माध्यम से मैं आम जन मानस से भी यह कहना चाहूंगी, की #Saalbhar60 को ट्रेंड कराकर हमारी इस मुहिम के साथ जुड़ें ताकि हम अधिक से अधिक लोगों के साथ अपनी इस बात को सरकार तक रख सकें।

संयुक्त राष्ट्र में आपने क्लाइमेट चेंज को लेकर पांच देशों के खिलाफ याचिका दायर की थी, इसके बारे में हमें बताएं?

हमने 2017 में हमारी सरकार के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक याचिका दायर की थी और उसको राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने कवर किया, शायद वहीं से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उन लोगों को मेरे बारे में पता चला होगा, तो उन्होंने मेरे वकील को कांटेक्ट किया कि वो मुझे अपने साथ लेना चाहते हैं फिर किसी तरह मेरे पिता जी का नंबर शेयर हुआ और फिर हमने स्काइप पर बातचीत की और फिर संयुक्त राष्ट्र में मैं उस याचिका का एक हिस्सा बन गयी। इस याचिका में मुख्यतः 5 देशों तुर्की, अर्जेंटीना, फ्रांस, जर्मनी और ब्राजील ने जलवायु संकट को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाकर मानवाधिकारों के हनन की बात कही गयी और ये सभी वो देश हैं जिन्होंने चाइल्ड राईट कन्वेंशन साइन किया था। अगर हमारा देश इस चाइल्ड राईट कन्वेंशन को साइन करता तो भारत भी इसका एक हिस्सा होता, वैसे एशिया के दो प्रमुख देश भारत और चीन इन पाँचों देशों से ज्यादा नुकसान फैलाने वाले हैं।

स्वीडन की पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg), से कभी आपकी बात हुई है…..

संयुक्त राष्ट्र में याचिका दायर करने के दौरान न्यूयॉर्क में ग्रेटा से हमारी बात हुई थी, वहां पर हम दोनों एक ही कमरे में ठहरे थे, सही मायनों में वो हम सब के लिए एक इंस्पिरेशन है। सबसे बड़ी बात कि वो जो भी कर रही है वो हमारे लिए थोड़ा असंभव है खर्च कम हो, इसलिए उसने हवाई यात्रा के बजाय समुद्र यात्रा को तरजीह देना शुरू किया है वह सिर्फ शाकाहार ही अपनाती है। मैं एक्टिविज्म के साथ-साथ स्कूल भी जाती हूँ तो हर वक्त पूर्ण रूप से संलग्न रहने में मैं असमर्थ हूँ। ऐसे में ग्रेटा को देखकर हम सबको सोचना पड़ता है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए एक सामान्य व्यक्ति किस तरह अपना योगदान दे सकता है?

व्यक्तिगत स्तर पर हर कोई बहुत कुछ कर सकता है वो भी बिना कोई अतिरिक्त मेहनत किये, हम सब सस्टेनेबल लाइफ जी सकते हैं। पानी को बर्बाद होने से बचाना हम सबको अपनी दिनचर्या में रखना चाहिए, बिजली, कागज़, भोजन भी हमको बचाना होगा। अभी एक ही समय में एक तरफ कहीं खाना बर्बाद हो रहा होता है, तो एक तरफ कोई भूख से बिलख रहा होता है। प्लास्टिक को भी हमें छोड़ना चाहिए, एक मेटल की बोतल हमे हमेशा अपने साथ रखनी चाहिए ताकि हमें प्लास्टिक की बोतल खरीदनी न पड़े, जूट के थैले के साथ बाजार जाने की आदत को हमें अपनाना ही होगा नहीं तो आगे आने वाली पीढ़ी के लिए हम हवा, जल कुछ भी नहीं बचा पाएंगे। कई लोगों को हमने देखा है कि सिर्फ अपने स्टेटस को दिखाने के लिए वो हर जगह कार लेकर चलते हैं, चाहे उन्हें पास ही क्यों न जाना हो, ऐसे लोगों को मैं यही कहना चाहूंगी कि स्टेटस दिखाने के फेर में वो अपनी भावी पीढ़ी को खतरे में न डालें।

भविष्य में आप एनवायरनमेंट एक्टिविस्ट के रूप में ही काम करना चाहेंगी या फिर किसी और क्षेत्र में रहकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करेंगीं?

अभी मैं नौवीं कक्षा की छात्रा हूँ, भविष्य में मेरा कार्य-क्षेत्र पर्यावरण ही रहेगा लेकिन पर्यावरण के क्षेत्र में मैं किस तरह से कार्य करुँगी ये अभी तक निर्णय नहीं लिया है। हो सकता है पर्यावरण शिक्षिका बनूँ या फिर पर्यावरण वैज्ञानिक, पर्यावरणविद के रूप में भी मैं काम कर सकती हूँ।

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