तो क्या कोरोना के लिए वरदान है “प्लाज्मा थेरेपी”
योगिता यादव –
अगर आपके मन में भी प्लाज्मा थेरेपी को लेकर कुलबुलाहट है, तो योगिता का ये लेख आपको अवश्य पढ़ना चाहिए, प्लाज्मा थेरेपी है क्या है? यह कैसे की जाती है? किस प्रकार मरीजों को ठीक किया जा सकता है, और क्या हैं इसके नफा-नुकसान आइए समझते हैं।दरअसल कोरोना वायरस के इस संकट में प्लाज्मा थेरेपी भी काफी चर्चा में आई और कोविड-19 के पीड़ित रोगियों के लिए उम्मीद की किरण के रूप में इसे देखा गया लेकिन कुछ सवाल जो हमारे मन में लगातार कौंधते रहे रहे कि आखिर प्लाज्मा थेरेपी है क्या?
मानव शरीर के रक्त में मुख्यतः चार चीजें शामिल होती हैं-
1. लाल रक्त कणिकाएं (RBC- Red blood Cells)
2. श्वेत रक्त कणिकाएं (WBC- white blood Cells)
3. प्लेटलेट्स (PLATELETS) और
4. प्लाज्मा (PLASMA)
रक्त में प्लाज्मा “पीले रंग का एक तरल पदार्थ” है और यह रक्त का वह तरल हिस्सा होता है जो शरीर के रक्त को रक्त कोशिकाओं में बाँधने का कार्य करता है। यह पूरे शरीर में रक्त कोशिकाओं के द्वारा प्रोटीन को पहुँचाने का कार्य भी करता है, प्लाज्मा शरीर के कुल रक्त की मात्रा का लगभग 55% होता है एक प्लाज्मा ही वह तरल पदार्थ है, जिसके जरिए एंटीबॉडी शरीर में भ्रमण करते हैं और यह एंटीबॉडी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति के रक्त में मिलकर रोग से लड़ने में मदद करते हैं।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
कोरोना के सन्दर्भ में इसे ऐसे समझते हैं- जब किसी ऐसे व्यक्ति के रक्त में से प्लाज्मा निकाल लिया जाए जो कि कोरोनावायरस से पूरी तरह स्वस्थ हो चुका हो चूँकि वह इंसान पहले उस संक्रमण से ठीक हो चुका है, माने उसके शरीर में मौजूद रक्त में कोरोना वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडीज (रोग प्रतिरोधी जीवाणु) बन चुके हैं जो उसे उसके शरीर में आने वाले संक्रमण को मात देने में मदद कर रहे हैं।
यह एंटीबॉडीज प्लाज्मा में ही मौजूद होते हैं इसीलिए प्लाज्मा को निकालकर प्लाजमा थेरेपी में इस्तेमाल किया जाता है। सरल भाषा में समझे तो प्लाज्मा थेरेपी में यही एंटीबॉडी एक प्लाज्मा डोनर यानि संक्रमण को मात दे चुके व्यक्ति के रक्त से निकालकर संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है। जिसके लिए डोनर और संक्रमित व्यक्ति का ब्लड ग्रुप एक होना आवश्यक है। प्लाजमा थेरेपी खासतौर पर विशेषज्ञों की निगरानी में ही की जाती है।
कैसे निकालते हैं प्लाज्मा?
जो भी व्यक्ति कोरोना संक्रमण से ठीक होकर स्वस्थ हो चुका हो यानी कि क्वॉरेंटाइन पीरियड से निकल चुका हो, वह एक प्लाज्मा डोनर बन सकता है। एक डोनर के रक्त से निकाले गए प्लाज्मा से दो व्यक्तियों का इलाज किया जा सकता है। लगभग 200 मिलीग्राम प्लाज्मा एक बार में किसी भी डोनर के रक्त से निकाला जा सकता है। इस प्लाज्मा को निकाल लेने के बाद करीब 1 साल तक -60 डिग्री पर स्टोर भी किया जा सकता है।
कितनी सफल है यह प्लाज्मा थेरेपी?- किसी भी डोनर के रक्त में से प्लाज्मा निकालने पर उसे कोई भी नुकसान नहीं होता है। हालांकि अब तक थेरेपी से पूर्ण रूप से कोरोनावायरस ठीक होने के पुख्ता प्रमाण नहीं है, पर कई संक्रमण में इसका सफल प्रयोग किया गया है।
1918 मे Spanish pandemic flu
2003 मे SARS
2009-10 मे H1N1
2014 मे Ebola influenza
जैसी संक्रमित बीमारियों में प्लाजमा थेरेपी उपयोगी मानी गई है। वर्तमान स्थिति में प्लाज्मा थेरेपी सबसे ज्यादा उपयोगी हाई रिस्क वर्कर यानी कि स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस कर्मी, सफाई कर्मियों इत्यादि सभी फ्रंट लाइन में काम करने वाले संक्रमित हो रहे व्यक्तियों के लिए संक्रमण से बचने के लिए सफल मानी जा रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ, रवि मलिक के मुताबिक प्लाज्मा तकनीक काफी पुरानी तकनीक है। इसका कई दशकों से इस्तेमाल हो रहा है। अभी जब हमारे पास कोरोना का कोई पुख्ता इलाज नहीं है, तो यह तकनीक गंभीर कोरोना मरीजों के लिए एक मददगार कड़ी साबित हो सकती है।