लोकतंत्र के इतिहास में सबसे अनोखा होगा बिहार चुनाव….

Team VOB

वर्ष 2020 का लगभग समय चिंता में ही गुजरा जा रहा है और यह चिंता है वैश्विक महामारी कोरोना से खुद को बचाने की। इसी बीच बिहार चुनाव भी होने हैं। बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जैसे-जैसे ज़ोर पकड़ रही हैं, चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मियों में भी बेचैनी बढ़ने लगी है। बिहार का यह विधानसभा चुनाव, कोविड-19 महामारी के बीच आयोजित होने वाला देश का पहला चुनाव है। बिहार अभी दो समस्याओं से जूझ रहा है; (बाढ़ और कोरोना महामारी) बिहार के कई जिले अभी बाढ़ से प्रभावित हैं और कोरोना की स्थिति भी सुधरने का नाम नहीं ले रही है ऐसे में बिहार में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर “चुनाव आयोग” पर भी आम जनमानस प्रश्नचिन्ह उठा रहे हैं।

जनसंख्या घनत्व के हिसाब से अभी उचित नहीं है चुनाव….

जनसँख्या की द्रष्टि से बिहार का देश में तीसरा स्थान है जनवरी 2020 तक बिहार की जनसंख्या 14 करोड़ के पार निकल चुकी है जिसमे से 7 करोड़ 18 लाख मतदाता हैं। जनसँख्या घनत्व के हिसाब से देखा जाय तो बिहार में प्रति किलोमीटर 1102 व्यक्ति रहते हैं।  सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखने के लिए प्रत्येक बूथ पर 1000 या उससे कम मतदाताओं की संख्या को रखने के लिए पहले से उपस्थित 72,727 बूथों के अलावा 33,797 ऑक्सिलरी बूथों के निर्माण की आवश्यकता हैं यानि की लगभग 45% तक नये बूथों की वृद्धि की जानी है।

इधर चुनाव आयोग जारी कर चुका है नयी गाइडलाइन….

चुनाव आयोग चुनाव कराने की पूरी तैयारी में है कोरोना महामारी को देखते हुए पिछले सप्ताह चुनाव आयोग ने नयी गाइड लाइन भी जारी कर दी है, इस गाइड लाइन के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह ध्यान रखना होगा, वरिष्ठ नागरिकों, असहाय लोगों एवं किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों का विशेष ध्यान दिया जायेगा।विशाल जनसभा, रैली एवं रोड शो की कोई अनुमति नहीं दी गयी है। जन संपर्क अभियान में घर घर अधिकतम पांच लोगों की अनुमति दी गयी है।

राजनैतिक पार्टियों का गणित होगा फेल….

बिहार में वर्तमान में छोटी बड़ी लगभग एक दर्जन राजनैतिक पार्टियाँ हैं जो इस बार के विधानसभा चुनाव में अपनी दावेदारी पेश करेंगीं। सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपना गुणा भाग पहले से उपस्थित चुनाव बूथों के अनुसार लगा लिया है। अब कोरोना के समय में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी की गयी नयी गाइडलाइन इन सभी पार्टियों को हैरत में डालने का काम करेगी। नए बूथ के क्रियान्वयन से पूर्व में हुए मतदानों का बूथ विश्लेषण करना कठिन साबित होगा।

 पारंपरिक चुनाव प्रचार तरीके अब नहीं होंगे कारगर….

किसी भी पार्टी या उम्मीदवार की चुनाव में जीत-हार पर चुनाव प्रचार का काफी प्रभाव पड़ता है, चुनाव प्रचार के मामले में वर्ष 2015 के मुकाबले बिहार चुनाव इस बार बिल्कुल ही भिन्न होने वाला है। कोरोना महामारी का व्यापक प्रभाव चुनाव प्रचार पर भी पड़ेगा। अभी तक तो बिहार में लॉकडाउन ख़त्म नहीं हुआ है और कोरोना के मरीज जिस तरह मिल रहे हैं उससे तो यही लगता है कि सितम्बर माह में इसे और भी आगे बढ़ाया जायेगा। चूँकि चुनाव आयोग ने यह निर्धारित कर दिया है कि चुनाव तय समय पर ही कराये जायेंगे। मतलब यही हुआ कि उम्मीदवारों के पास चुनाव की तैयारी के लिए अब महज दो महीने का ही वक्त बचा है। ऐसे में चुनाव प्रचार का एक सबसे मजबूत विकल्प बचता है वो है सोशल मीडिया और वर्चुअल रैली ( डिजिटल कांफ्रेंस)। चुनावी विश्लेषकों एवं रणनीतिकारों का भी ऐसा ही मानना है कि जिसने भी सूझ बूझ से इन्टरनेट माध्यम से प्रचार प्रसार को नहीं अपनाया वो काफ़ी पीछे रह जाएगा।  

राजनैतिक दलों में गहमा गहमी जारी है….

पार्टियों में जोड़ तोड़ तो काफी दिनों से चलती ही आ रही है अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को हराने के लिए बिहार की सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और वामपंथी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इन दलों को साथ उतारने की रणनीति तय करने के लिए बुधवार को राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक संयुक्त शिष्टमंडल ने मिलकर बातचीत की। इस बातचीत से यही निष्कर्ष निकला की वर्ष 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव- राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, अन्य वामपंथी दल एवं लोकतांत्रिक पार्टियां मिलकर सभी 243 सीटों पर एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे।

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