पिता के अपमान ने बनाया विकास दुबे को माफिया….

VOB Desk

कानपुर। बिकरु गांव के एक किसान परिवार के लड़के विकास दुबे के माफिया बनने की कहानी राजनीति के अपराधीकरण की कोख से जन्मी है। विधायकों, सांसदों और मंत्रियों की सरपरस्ती में उसे मिलती रही, इसलिए पुलिस विकास पर हाथ डालने से कतराती रही। नतीजा यह हुआ कि जमीन पर कब्जा करने में माहिर मारपीट करने वाला विकास देखते ही देखते आतंक का पर्याय बन गया। चौबेपुर के बिकरु गांव से निकलकर आज उसका नेटवर्क शिवली मंधना शिवराजपुर बिल्लौर कानपुर शहर तक फैल गया है।

विकास के आपराधिक करियर की शुरुआत 1990 से हुई। पिता के अपमान का बदला लेने के लिए उसने बिकरु से सटे हुए गाँव डिब्बा निवादा के चौधरियों को मारा। इस मामले में रिपोर्ट भी हुई। ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की राजनीतिक हनक कम करने के लिए विकास का सहारा लेने की शुरुआत यहीं से हुई। उस वक्त विकास की मदद पूर्व विधायक नेक्चन्द्र पांडे ने की। विकास मारपीट करता पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले जाती और उधर नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते। नतीजा यह हुआ कि कई मामलों में विकास या तो पकड़ा ही नहीं गया या थाने से ही छोड़ दिया गया। इस बीच बिल्हौर के पास राजन कटिहार की हत्या हो गई। इस मामले में विकास के बहनोई रामखिलावन पांडे नामजद हुए लेकिन विकास बच गया। यह मुकदमा अब खत्म हो चुका है। 1990 में ही बिकरु गांव के झुन्ना बाबा का कत्ल हो गया, कहा यह गया कि यह हत्या विकास ने कराई, क्योंकि उनकी करीब 16 बीघा जमीन कब्जाना चाहता था इस मामले में रिपोर्ट हुई लेकिन बाद में वापस ले ली गई। उसी दौरान भाजपा नेता हरिकिशन श्रीवास्तव की नजर उस पर पड़ी और उसके बाद विकास का दबदबा और बढ़ गया। हरिकिशन चौबेपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ते थे। विकास क्षेत्र में हरी किशन का सिपहसालार बन कर उभरा, बिकरु से लेकर शिवली और उसके आसपास के इलाकों में उसकी हनक बढ़ी। उसके इशारे पर वोट गिरने लगे। राजनीति की आड़ में उसकी वसूली और जमीनों पर कब्ज़ों की रफ्तार भी बढ़ गई। बीच में कुछ दिनों तक वह उस समय के सांसद श्याम बिहारी मिश्र के भी संपर्क में रहा।

हरिकिशन सन 1996 में बसपा में गए तो विकास भी बसपा में शामिल हो गया। इसी साल विधानसभा चुनाव में लल्लन और विकास पहली बार एक-दूसरे से टकराये। लल्लन भाजपा उम्मीदवार संतोष शुक्ला का चुनाव संभाले हुए थे। हरिकिशन जीते तो  उनके विजय जुलूस पर शिवली बाजार में हमला हुआ। इसके लिए इसके कुछ दिन बाद लल्लन के भाई पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई। इस घटना में विकास और उसके भाइयों को भी नामजद किया गया। यहीं से लल्लन और विकास की खूनी रंजिश शुरू हो गई।

शिवली में जमीनों की बढ़ती कीमतों और शिवली बाजार से हो सकने वाली वसूली पर विकास की नजर थी। इस रंजिश को दिन पर दिन गाढ़ा किया। अपनी हनक और राजनीतिक समर्थन के बलबूते विकास जिला पंचायत सदस्य भी चुना गया। 3 गांव में उसके घर वालों की प्रधानी हो गई। विकास को संरक्षण देने वालों में उस समय की मौजूदा कैबिनेट मंत्री प्रेमलता कटियार का भी नाम आया, हालांकि इस बात को गलत बताती रही। यह भी कहा जाता है कि प्रेमलता के बेटे को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव विकास ने ही जितवाया। चंद सालों में ही विकास में अपने संपर्क सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों तक से बना लिए। यह महज संयोग नहीं था कि भाजपा नेता संतोष शुक्ल की हत्या के बाद उसने आत्मसमर्पण तभी किया जब प्रदेश में बसपा की सरकार बन गई।

जिस अंदाज में विधायकों और नेताओं के साथ उसने आत्मसमर्पण किया उससे यह साफ लगा कि पुलिस की मिलीभगत से खेल खेला गया। चौबेपुर से उस समय के बसपा विधायक अशोक कटिहार के विकास से करीबी संबंध रहे। विकास खुल्लम-खुल्ला यह कहता कि आप बसपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मुख्यमंत्री मायावती उससे नाराज नहीं हो सकती। बसपा से उनके निष्कासन को भी वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के दबाव में लिया गया दिखावटी कदम बताता है।

वर्ष 2001 में वरिष्ठ पत्रकार प्रांशू मिश्र की रिपोर्ट पर आधारित तथ्य

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