वीरान पड़ा है प्रतियोगियों का मुखर्जी नगर….

VOB Desk

दिल्लीः कोरोना वायरस का कोहराम हम हर तरफ देख ही रहे हैं, देश के हर कोने में हम इसका खौफ देख सकते हैं। अधिकतर भीड़ वाले इलाकों में भी सन्नाटा साफ़ तौर पर देखा जा सकता है, कुछ ऐसा ही हाल है दिल्ली के मुखर्जी नगर का। मुखर्जी नगर की पहचान बन चुकी हैं यहाँ की सिविल सर्विस की तैयारी कराने वाली कोचिंगें। मुखर्जी नगर इलाके में देश के विभिन्न राज्यों से प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में छात्र तैयारी के लिए आते हैं, निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग एवं उत्तम वर्ग के भी बच्चे यहाँ आकर रहते हैं और फिर अगले 2-3 सालों तक इस जगह को ही अपना सब कुछ मान लेते हैं। आम दिनों में हलचल भरी मुखर्जी नगर की ये गलियाँ अब तंगी सूनसान पड़ी हैं।

इस समय तो घर रहना ही बेहतर….

अप्रैल-मई में जैसे ही परीक्षाएं पूर्ण होती हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्र देश के विभिन्न स्थानों की ओर पलायन करने लग जाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते ये पलायन विपरीत हुआ है, जो छात्र विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए बाहर रह रहे थे वो अपने अपने घरों को लौटने लगे। मार्च से ये सिलसिला शुरू हुआ और लगा कि जल्द ही सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा लेकिन इस महामारी के थमने के अभी भी कुछ आसार नहीं दिख रहे और अब तो देश के सर्वोच्च न्यायलय ने भी सरकार को आदेश दिया है कि 15 दिन के अन्दर सभी प्रवासियों को अपने अपने घर पहुँचाया जाय। इसी कारण जो छात्र यहां रह गए हैं वे भी अब यहां से निकलने की पूरी तैयारियों में हैं। छात्र स्वयं इस बात को मानते हैं कि इस समय घर रहना ही बेहतर है।

लाइब्रेरी और कोचिंग संस्थान जब बंद ही हैं तो यहाँ रहकर क्या करें….

Education Hub के रूप में मशहूर दिल्ली का यह क्षेत्र लाइब्रेरी के लिहाज से भी छात्रों के के लिए उपयुक्त स्थान माना जाता है, छात्र कमोबेश यहां पढ़ाई के माहौल, विभिन्न कोचिंग संस्थान और लाइब्रेरी को देखते हुए आते हैं, दिल्ली में लगातार बढ़ते कोरोना के मामले और कोचिंग संस्थान व लाइब्रेरी के बंद होने से छात्रों का यहाँ रुकना अब किसी काम का नहीं। voxofbharat ने टेलीफोन के माध्यम से ऐसे ही कुछ छात्रों से बात की जो यहाँ रहकर तयारी कर रहे थे, पर अब अपने घरों में हैं। इन छात्रों का कहना है कि वैसे तो तैयारी हम कहीं भी रहकर कर सकते हैं लेकिन यहाँ, मुखर्जी नगर आकर हमे पढ़ाई का एक वास्तविक माहौल मिलता है कोचिंग संस्थान हमें हर रोज नये नए तौर तरीकों से रूबरू कराते हैं तो लाइब्रेरी जाकर किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त बनती हैं और हम देश दुनियां को बेहतरी  से समझ पाते हैं। लेकिन अभी पिछले 2 महीने से ये सब बंद है ऐसे में यहाँ रहकर हम क्या करें।

ग्रुप स्टडी भी नहीं कर सकते….

मुखर्जी नगर आकर ये छात्र यहां पीजी में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जो घर से अकेले आते हैं वो भी किसी न किसी के साथ एक कमरे में रहते हैं और धीरे धीरे कुछ छात्र मिलकर अपना एक समूह बना लेते हैं फिर ग्रुप स्टडी करते हैं। voxofbharat को इन छात्रों ने बताया कि हमारे एक ग्रुप में लगभग 7-8 छात्र होते हैं। किसी का भूगोल अच्छा है, किसी को पर्यावरण का जबरदस्त ज्ञान है, कोई इतिहास में दिलचस्पी रखता है तो किसी की संविधान पर अच्छी पकड़ है ऐसे में ग्रुप स्टडी में हम सब एक दूसरे के गुरु बन जाते हैं और आपस में सभी विषयों पर डिस्कशन करके विभिन्न समस्याओं का समाधान निकालते हैं लेकिन कोरोना के काल में अब हम चाहकर भी एक दूसरे से मिल नहीं सकते। मकान मालिकों ने हमसे साफ कह दिया है कि बाहर से किसी को घर के अन्दर नहीं आने दिया जायेगा, बाहर भी हम कहीं किसी से नहीं मिल सकते। चाय की स्टाल, किताबों की दुकान, फुटपाथ सब खाली पड़े हैं ऐसा लगता है जैसे कोई बवंडर आया हो और सब कुछ अपने साथ ले गया हो।

इस फुटपाथ पर कभी बिकता था, विश्व का इतिहास….

इस फुटपाथ पर बिकता था दुनिया भर का इतिहास आज 2-4 लोग भी देखने को नहीं मिलते

मुखर्जी नगर इलाके में काफी मात्रा में स्टेशनरी की दुकानें हैं। जिन पर हर विषय से जुडी अध्ययन की किताबें मिलती हैं। मुखर्जी नगर के फुटपाथ पर पूरे विश्व का इतिहास आसानी से मिल जाता है व छात्रों के अध्ययन से जुडी अन्य सामग्री भी यहाँ मिलती हैं, लेकिन वैश्विक महामारी के चलते इन दुकानों की कमाई पर पूरी तरह से असर पड़ा है। स्थानीय दुकानदार बताते हैं कि lockdown में तो सब बंद ही था अब यह खुलने के बाद भी पहले के मुकाबले अब केवल दो-चार फ़ीसदी ही काम रह गया है। इस वजह से दुकानों का किराया देना भी हमारे लिए मुसीबत बन गया है। वहीँ फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले अब भी यहाँ से गायब हैं क्योंकि उनको भी पता है कि खरीददार अभी यहाँ नहीं हैं।

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