पृथ्वी को लॉकडाउन का उपहार

सुमित सिंह विशेन

आज पूरा विश्व जहाँ वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहा है और इसे रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया गया है। इस लॉकडाउन के मंजर को शायद ही कोई भुला पायेगा, ऐसा लग रहा है मानो सारी दुनिया रुक सी गई हो, हर तरफ माहौल थम सा गया है, ऐसा लग रहा है जैसे कि दुनिया को किसी ने दशकों वर्ष पीछे धकेल दिया हो, पर इस मंजर से प्रकृति को बहुत फायदा हुआ है। सोशल डिस्टेंस बना रहें इसके लिए उद्योगों में कामकाज ठप है, वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध और निर्माण कार्यों को भी बंद किया गया है। जिसके रुकने से पृथ्वी पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है, पर्यावरण में प्रदूषण घटा है। पर्यावरणविदों का भी मानना है कि पर्यावरण, वायु और नदियों को साफ़ करने के लिए सरकारें जो काम वर्षों में नहीं कर पाईं, वह लॉकडाउन ने कर दिखाया है।

क्या फायदे हुए-

  • सांस लेने युक्त हवा
  • लॉकडाउन परियोजना गंगा को साफ करने में सफल
  • गंगा में आक्सीजन की मात्रा में बढ़ोतरी
  • ओजोन लेयर में हुए सुधार
  • पृथ्वी के कंपन में आई कमी
  • गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा (पहले -5.20 प्रति लीटर और वर्तमान -6.50 प्रति लीटर है)
  • हरिद्वार में गंगा में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा (पहले 4.50 प्रति लीटर अब 5.75 प्रति लीटर पर पहुंच गई है। जो कि तय मानक से थोड़ा ही कम रह गयी है।
  • दशकों से सरकारों द्वारा कानपुर से बनारस तक गंगा को साफ़ करने के लिए करोड़ों रुपए बहाए, लेकिन परिणाम जस का तस रहा… लेकिन लॉकडाउन के चलते कानपुर जैसे महानगर में गंगा को स्वच्छ देखकर कनपुरिये भी भौचक्के रह रहे है।
  • यही नहीं दिल्ली में यमुना का साफ़ होना किसी चमत्कार से नहीं।

पर्यावरण की सुरक्षा हेतु ‘पृथ्वी दिवस या अर्थ डे’ मनाया जाता है और कई तरह की रचनात्मकता से पृथ्वी को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के उपाय भी सुझाये जाते हैं।

कुछ दिनों पहले गूगल ने ‘मधुमक्खी’ को समर्पित किया था अपना डूडल और इसके जरिये मधुमक्खियों के महत्व के बारे में बताया गया। पृथ्वी के सबसे छोटे जीव इकोसिस्टम को चलाने में सबसे अधिक मदद करते हैं। आइए आपको हम अपने ग्रह के उस सबसे छोटे जीव से अवगत कराएँगे, जो हमारे इकोसिस्टम को चलाने में बहुत अधिक सहायक है वो है- मधुमक्खियां

विश्व की 30% फसलें परागण पर निर्भर हैं और लगभग 90% पेड़-पौधे बढ़ने के साथ फल और बीज उत्पन्न करने के लिए परागण का इस्तेमाल करते हैं, मधुमक्खियां इस परागण की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती है। पेड़-पौधों को अपने परागकणों को दूसरे पौधों तक पहुंचाने के लिए कीट-पतंगों और मधुमक्खियों की आवश्यकता पड़ती है। जब मधुमक्खी किसी एक फूल पर बैठती है तो उसके पैरों और पंखों में पराग कण चिपक जाते हैं और जब यह उड़कर किसी दूसरे पौधे पर बैठती है, तब यह पराग कण उस पौधे में चले जाते हैं और उसे निषेचित कर देते हैं। इससे फल और बीजों की उत्पत्ति होती है। मधुमक्खियां परागण की प्रक्रिया करते हुए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण करने में मदद करती हैं, इसमें कई तरह के पेड़ पौधे और जीव जंतुओं कीट पतंगे रहते हैं। इसलिए अब यह आवश्यक है कि मधुमक्खियों की आबादी बढ़ाने के उपाय खोजने चाहिए।

(हाल में प्लोस वन पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने बायोईंधन का उत्पादन बढ़ाने के लिए मक्खियों द्वारा सरसों, सूर्यमुखी और मक्के की फसलों के ज्यादा परागण की आवश्यक्ता जताई थी। रोजेनक्रांस भी मानते हैं कि यह सही सोच है- उदाहरण के तौर पर अगर सरसों के खेतों में योजना के अनुसार संख्या में मक्खियां हों तो पैदावार 30 से 40 फीसदी बढ़ सकती है। इसके लिए किसानों को अपनी जरूरत के अनुसार मक्खियां मंगवाने की जरूरत है और इसकी उन्हें कीमत चुकानी होती है। इस तरह की व्यवस्था अमेरिका और चीन में पहले से मौजूद है और अब यूरोप में भी प्रचलन में आ रही है.)

हवा की भी हुई सफाई-

24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के समय भारत की राजधानी दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 122 अंक पर थी। जो लॉकडाउन के दौरान 21 अप्रैल को 87 पर आ गया। गाजियाबाद में 22 मार्च को एक्यूआई 237 पर था। 21 अप्रैल को यह 135 प्वाइंट घटकर 102 पर आ गया। इससे पहले लॉकडाउन के दौरान ही 31 मार्च को यह 56 और सात अप्रैल को 54 पर था। (आपको बता दूँ, 0 से 50 तक के एक्यूआई को अच्छा, 50-100 तक को संतोषजनक माना जाता है।)

अगर आगे भी हम अपने आसपास के पर्यावरण को संरक्षित करना चाहेन्न तो इसके लिए हम सभी को अपने घरों में या आस पास पौधारोपण करना होगा । हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हमें अधिक मियाद वाले पेड़ पौधों को लगाना ज्यादा कारगर होगा जैसे- पीपल,नीलम,आम,बरगद,पीस लिली,तुलसी और बांस। जो अधिक मात्रा में ऑक्सीजन तो देते है वही पर्यावरण को साफ भी करते है।

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