कोरन्टीन भाग-1
जितेन्द्र कुमार दुबे
साजन…..!
जब मैंने सुना
नया शब्द कोरन्टीन
सोचा……
ये जो मास्क पहनते हैं,
सोशल डिस्टेंसिङ्ग करते हैं,
सेनेटाइजर से….
हाथ धोते हैं,
घर आने के बाद,
कपड़े बदल कर नहाकर..
घर के अन्दर जाते हैं…
इसी को कहते हैं
कोरन्टीन……।
पर
सब झूठा था…..!
देर ही से,
गहन शोध से….
मैंने जाना
साजन……!
तुम जब से गये हो चीन
ऑटोमैटिक….!
मैं हो गई कोरन्टीन….
अब रात कटे ना दिन,
तन मन सब है गमगीन,
स्वाद सभी अब फीके लागे,
खट्टा मीठा या हो नमकीन…।।
कलमकार उत्तर प्रदेश पुलिस में उपाधीक्षक (शाहगंज, जौनपुर) हैं।